27/05/2020

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!


देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन
बाति - बाति मा लड़े - मरें इक दूजे का गरियाइन
माला एक खरीदौ भक्तौ, मोदीपाठ करौ तुम
चुल्लूभर पानी मा कूदौ, वहिमा डूबि मरौ तुम

दसरथ चाचा कहिन जमाना भेड़ी चाल चले है
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

कुछ पै ट्रेन चढ़ाइन, कुछ का मारिन वहिके भीतर
टें टें चिल्लाय रहे हैं, दिहिन सफाई तीतर
भूँखे प्यासे रहें राह मा मरें लछिमन भैया
हाय! हाय! चिल्लाय रहीं हैं घरै सुमित्रा मैय्या

चूल्हा बुझा परा है केवल जीवन, देह जले है
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

ऊपर से यमराज निहारैं, नीचे गहरी खाई
बिना आँखि के देख रहे हैं सब ससिभूसन भाई
हालचाल पूँछिन राघव से आँसू छलक पड़े हैं
सही कहित है, मोदी दादा गप्पी बहुत बड़े हैं

मीठी - मीठी बातैं कइके जनता खूब छले हैं
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।।

Neelendra Shukla

ससिभूसन - Shashibhushan Samad

हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी!


कौन सा जादू किये हो बोल दो मेरे वशी ।
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

नेह का दीपक जलाकर
पुण्यपूरित मन लिए
ढूँढता तुमको रहा मैं दर्द
का दामन लिए

हम जलें हैं साथ में जलता रहा मेरे शशी ।
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

तुम हमारा साथ छोड़े
और ओझल हो गये
भावनाएँ बिक चुकी हैं
स्वप्न बोझिल हो गये

जग रहा हूँ मैं हमारे साथ जगती है निशि ।
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

साथ दूँगी जिन्दगी भर
ये वचन खुद बोलकर
कौन जाता है अकेला
यूँ किसी को छोड़कर

मौन थी सारी दिशाएँ देखकर मुझको हंसी
हम तुम्हारे हैं पुरुरवा तुम हमारी उर्वशी ।।

Neelendra Shukla

गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो!


ये गहरे सम्बन्ध हमारे किसकी ख़ातिर तोड़ रहे हो
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।

आ जाओगे दुखड़े लेकर
पहले से ही कह देता हूँ
जग मुझको कुछ भी कहता है
हर बातों को सह लेता हूँ

फिर क्यूँ हाँथों में पत्थर ले तुम अपना सर फोड़ रहे हो ।
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।।

मैंने इन आँखों से उसको
कितनों के संग देखा है
उसकी बाँहों में जूही थी
ज्योति थी, अब रेखा है

वो छलिया है कपटी, वहशी जिससे रिश्ता जोड़ रहे हो ।
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।।

समझ नहीं पाई बरसों से
साथ रही पर दूर रही
नूर हमारे चेहरे पर था
जब तक मेरी हूर रही

वक्त अभी भी है आ जाओ क्यूँ हमसे मुँह मोड़ रहे हो ?
गैरों को पाने की धुन में तुम अपनों को छोड़ रहे हो ।

Neelendra Shukla

जलता हुआ चराग बुझाओ!


रो लेने दो निपट अकेले कोई मेरे साथ न आओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

गाढ़ अंधेरे में रहने दो
आँखों को नम होने दो
दुःख बढ़ने दो इस जीवन
में, खुशियों को कम होने दो

अपनी राय स्वयं तक रखो कोई नहीं विचार सुझाओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

काले बादल छा जाने दो
ये सूरज छुप जाएगा
इतनी आँधी, तूफानों में
हाँ! दीपक बुझ जाएगा

शीशे की दीवाल व्यर्थ है इनके पीछे नहीं लुटाओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

कर्मप्रधान विश्व रचि राखा
तुलसी बाबा बोले हैं
फल की आशा त्याग दिये
हैं, श्रम करते हैं रो ले हैं

भाग्यहीन रेखाएँ हैं तो क्यों हाँथों से द्वेष जताओ
लगे रौशनी इन आँखों में जलता हुआ चिराग बुझाओ ।

Neelendra Shukla

भइया लाइव आय रहे हन!


सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन 
भइया लाइव आय रहे हन ।।

देख्यो ज्यादा देर ना करेव
पाँच बजे हम आउब
चार गजल, दुइ गीत
प्रेम की कबिता तीन सुनाउब

पहिले दाँत चियारब, हंसिबै
पूँछब सब किलियर है
आय रही आवाज साफ
या बीचे मा निशिचर है

पप्पू तुम तैयार रहेव
सेयर पै सेयर मारेव
हमरे संघे फेसबुक्क के
पेजवौ का तुम तारेव

भइया बोलिन रहै दियौ
देखौ तुम ना कइ पइहौ
भाषण दीहौ दुइ घंटा के
हमरै बोझ बढ़इहौ

भइया तुम देखौ तौ पहिले
केतना सुन्दर गाय रहे हन ।
सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन
भइया लाइव आय रहे हन ।।

बुआ नमस्ते, फूफा नाना -
नानी का परनाम
पापौ सोच रहे हैं लरिकै
आगे करिहैं नाम

धीरे - धीरे कण्ठ खुला
गुड्डू के लय मा आएँ
लेकिन मन मा सोंच रहे
हैं, ऊ अब तक ना आए

मैडम हाय करिन जइसेन
मुख पै छाई मुस्कान
एतना खुस्स भये हैं गुड्डू
जइसे लंगड़ा आम

यहू सुनाओ, वहू सुनाओ
चार जने जब बोलिन
चट्ट - पट्ट डायरी उठाइन
कविता - संग्रह खोलिन

तुम सब आपन झोरा खोलौ
गीत - गजल हम नाय रहे हन ।
सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन
भइया लाइव आय रहे हन ।।

बड़का भइया बरदहस्त धै
के बोलिन कविराज
मन प्रसन्न होइ गवा हमारौ
फेसबुक्क पै आज

वाह वाह जौ सुनें कबी जी
चार प्रशंसा पाइन
चालिस इंची के छाती मा
छप्पन इंची पाइन

जब से देख रहे इनका
हम आजै स्तब्ध भये हैं
लण्ठनटोला मा पढ़िके
ई एतने सभ्य भये हैं

एतने फालोवर बढ़िगे हैं
एतने व्यूअर देखिन
कुछ तौ राहत मिली कबी
का, अबै कमी है लेकिन

एक टिप्पणी करिन तड़ाका
फिर से कल हम आय रहे हन ।
सुनौ - सुनौ गोहराय रहे हन
भइया लाइव आय रहे हन ।।

Neelendra Shukla

तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर!



चल रहे दिन - रात जो पैदल सड़क पर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

कब तुम्हारे सामने वो
गिड़गिड़ाने आ गये
कब तुम्हें वे घाव पैरों
के दिखाने आ गये

घर पहुँचने लग गये दर - दर भटक कर ।
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

कांध पर बच्चे बिठाये
हाँथ में झोरा लिए
बैठते हैं पेड़ की छाँवों
तले बोरा लिए

प्यास से भी मर रहे आदम तड़पकर ।
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

फूटकर छाले मुलायम
पाँव से रिसते हुए
रो रहें है, चल रहे
बच्चे स्वयं पिसते हुए

क्या पता उनको, सिकन्दर है भयंकर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर।।

राह में ही कर प्रसव
फिर से प्रसूता चल पड़ी
गोद में नवजात लेकर
आ गई वो झोपड़ी

लड़ रही थी वो समस्या से सम्हल कर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

छोड़ दी बीबी, नहीं बच्चे
मगर कुछ खेद ना
तो तुम्हें मालूम क्या होगी
किसी की वेदना

प्रेम अद्भुत है, भले ही देह जर्जर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

दर्द, बेचैनी, विरह, संताप
के दुःख से व्यथित
क्या कहूँ तुमको ? सभी को
दिख रहा, है सब कथित

हो सके तो आत्मग्लानि कर, शरम कर
तुम बनाओगे उन्हें क्या आत्मनिर्भर ।।

~Neelendra Shukla

#lockdown_diaries

05/04/2020

तुम्हारा जाना

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तुम्हारा जाना इतना आसान
नहीं था मेरे लिए,
तुम्हारा जाना कुछ यूँ रहा
जैसे -

ज्ञानेन्द्रियों के चले जाने पर
कर्मेन्द्रियाँ स्वतः खो देती होंअपना अस्तित्व
और विलीन हो जाती हों अनन्त में ।

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

बच्चे

Smriti Shukla
हर बच्चा अपने माता पिता की तपस्या का
सुखद परिणाम है - मैंने कहा

तुम असभ्यों की तरह हंस दिये एक बेतुकी - हंसी

मैंने फिर कहा -
हर बच्चा अपने माता पिता
की तपस्या का सुखद - परिणाम है

ये उनसे पूँछो जिनके बच्चे नहीं हैं ।

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

समय का पलड़ा

अवसादों से ग्रसित हो जाता हूँ कभी कभी

और सोचता हूँ -

" जिस कार्य की परिणति जब हो जानी चाहिए,
तब क्यों नहीं होती "

मैंने अक्सर महसूस किया
समय का पलड़ा भारी रहता है
मन के संकल्प विकल्प पर ...

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

13/10/2019

● मन बन्जारा रे मन आवारा रे ●


● मन बन्जारा रे मन आवारा रे ●
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मन बन्जारा रे 
मन आवारा रे
मन जीते जो जीत यहाँ पर 
मन ही हारा रे 

मन उड़ जाए है 
मन जुड़ जाए है 
मन के आगे बेबस है 
ये दिल बेचारा रे

मन अन्धा है, मन बहरा है, मन है पागल रे 
मन कायल है, मन पायल है, मन है घायल रे 

सबके संग है, और अकेला 
मन इकतारा रे

मन भरमाये, मन तड़पाये, मन है सौतन रे 
मन समझाये, मन बहलाये, मन है जीवन रे 

सबको उलझाये है, सबको करे इशारा रे 

प्रेम सिखाये, त्याग सिखाये, नफरत भी दे, ज्ञान 
मन जिसका निर्मल हो जाए दे जाए निर्वाण 

तन रूपी बैसाखी का मन 
एक सहारा रे

मन बच्चा है, मन कच्चा है, मन है सच्चा रे 
मन गन्दा सोचे है लेकिन मन अच्छा है रे

मन ही अंधियारा जीवन का
मन उंजियारा रे 

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "
13/10/2019




11/10/2019

अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश



● अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश ●
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अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

जिनसे थी उम्मीद उन्हीं लोगों से धोखा खाए
गैरों की क्या बात करें जब अपने हुए पराए 
आपस की तू - तू मैं - मैं में समय गुजारें सारा 
जूता तकिया, सड़क बिस्तरा, छत आकाश तुम्हारा 

हाथों में दारू की बोतल मुँह में भरा भदेस 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

एक आदमी कैसे मदमाती सत्ता को तोड़े 
प्रश्न पूँछने को आतुर है, आते नहीं भगोड़े 
और मीडिया बाकी सारी खेल रही गोदी में 
देश हुआ है अन्धा बहरा नमो नमो मोदीमय 

आखिर कैसे बदलेगा इस भारत का परिवेश 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

सब्जी लाना, बच्चे ढोना, पीएचडी का शोध 
प्रोफेसर साहब हैं बच्चा करना नहीं विरोध 
चर्चा का झाँसा देकर के, उसे ले गये साथ 
मन की बात जुबाँ तक आई, बोल दिये हर बात 

एक यही सच्चा रिश्ता था, यह भी रहा न शेष 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

डालर बढ़ता जाए रुपया थरथर - थरथर काँपे 
और हमारे भगवन! देखें चौड़ी छाती नापें 
"फाॅदर ऑफ इंडिया" सुनकर देख रहे हैं ख्वाब 
उनको तेरी फिकर महज़, वो होंगे तेरे बाप 

रंग - बिरंगे कपड़े पहने दिखते हैं रंगरेज़ 
अच्छे दिन बैठे परदेस, दुर्दिन आए मेरे देश

हिन्दू - मुस्लिम, गाय, अयोध्या इन्हीं विषय के छल से 
साम दाम से, दण्ड भेद से, कूटनीति के बल से 
लोगों की आँखों पर पट्टी बाँध किया है अन्धा 
पहले पूजा करता है, फिर करता गोरखधंधा 

हम भारत के रखवाले हैं, यहाँ यही संदेश 
अच्छे दिन बैठे परदेस दुर्दिन आए मेरे देश

 - नीलेन्द्र शुक्ल " नील "
 -  10/10/2019

08/09/2019

बेतहाशा रो रहे हैं आप में


जिन्दगानी बीतती है पाप में
बेतहाशा रो रहे हैं आप में

ज्ञान देते ही रहे अध्यात्म का
जीव, ईश्वर, वेद गीता आत्म का
बस पढ़े समझे नहीं संताप में

एक पत्थर को रगड़कर आ गये
खत्म करके,मन्त्र पढ़कर आ गये
खर्च होते जा रहे हैं जाप में

देखना क्या उस गुरु की साधना
हो नहीं जिसको तनिक सम्वेदना
देखना गुरुता किसी माँ - बाप में

आज भूखा हूँ बताया, रो पड़ी
दूर है माँ, दूर उसकी झोपड़ी
जल रहा हूँ मैं अभागा शाप में

भोर से अस्वस्थ हूँ, सरदर्द है
दूर उनका भ्रम हुआ खुदगर्ज है
शर उठाकर जो चढ़ाया चाप में

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

06/09/2019

मुझे तुम छोड़ दोगी ये पता है



कभी कविता कभी हथियार जानाँ
हमीं से प्यार हमपे वार जानाँ

मुझे तुम छोड़ दोगी ये पता है
भले ही दिन लगें दो - चार जानाँ

खबर भी क्या पढ़ें आबो हवा की
बहुत झूठे लगें अखबार जानाँ

कही! क्या लिख रहे हो आजकल तुम ?
बहुत चुभते हैं ये अश्आर जानाँ

मुझे तुम छोड़ कर जब से गई हो
नहीं देखा कोई दरबार जानाँ

फ़कत खामोश लफ़्जों की बयानी
नहीं कुछ और मेरा प्यार जानाँ

बदलते लोग हैं हर रोज ऐसे
बदलती हो यहाँ सरकार जानाँ

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

तू क्यों बाहर रहती है



साहब सुन लो अर्जी है
कुछ मेरी भी मर्जी है

खून, पसीना बेंचे हो
तब आई खुदगर्जी है

हाँ मेरे हालात ओ ग़म
तेरी खातिर फर्जी हैं

कपड़े में इतने रफ्फू
मुझसे अच्छे दर्जी हैं

सोचा था कुछ अच्छे हैं
सबके सब बेदर्दी हैं

तंगी घर है सालों से
सालों से माँ भर्ती है

छोटी निकली बेहूदी
जो मन आये करती है

अब तो मुझमें जीना सीख
अब्भी मुझपे मरती है

घर में दीप जलाएगी
बिटिया बाहर पढ़ती है

तेरे घर के बाहर हूँ
तू आने से डरती है

"नील" तुम्हारे अन्दर है
तू क्यों बाहर रहती है

नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

31/08/2019

अनाज हूँ मैं

Pic Credit - Axita Joshi

तुम्हारे चेहरे की रौशनी हूँ, तुम्हारी आँखों का ख़ाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
हमारी भी है हसीन दुनिया उसी का इक आफताब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

नहीं हूँ पहला, न आखिरी हूँ, तुम्हारी साँसों के बाद हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
निहाल होता हूँ रोज सब पे, सभी का पहला इलाज़ हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

मुझे बचाओ, रखो हमेशा, नहीं बहाओ, हिसाब हूँ, मैं अनाज हूँ मैं,
मुझे किसानों से पूछना तुम, उन्हीं के जीवन का राग हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

तुम्हारा कल था, तुम्हारा कल हूँ मुझे समझ लो जो आज हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
सदा महकता हूँ थालियों में तुम्हारे दिल का नवाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

रगों रगों में जो बह रहा है वो खून मैं हूँ, जवाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
हर एक घर का, हर एक होटल, हर एक महलों का नाज़ हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

हर एक मुल्कों की आँख की मुझपर, युँ देखते हैं के खास हूँ मैं, अनाज हूँ मैं
फुलाए फिरते हो छातियाँ तुम, तेरे बदन का शबाब हूँ मैं, अनाज हूँ मैं

30/08/2019

कहो! कहने लगे तो क्या करोगे



हमेशा मुँह छुपा भागा करोगे 
बड़ा कब से कहो जज्बा करोगे

अभी ये हाल है जब सीखता हूँ 
कहो! कहने लगे तो क्या करोगे

सिखाओगे नहीं बच्चों को कुछ भी, 
तो फिर क्या ख़ाक तुम आशा करोगे 

निभाना जिन्दगी भर साथ उनका 
नहीं तो खाँ - म - खाँ तन्हा करोगे

शिकायत है बड़े लोगों से मेरी 
बड़ा मुझको भला तुम कब करोगे

लड़ो मुझसे उन्हें क्यों छेड़ते हो 
मेरे लोगों से भी नफरत करोगे

26/08/2019

मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही


इस तरफ से ना नहीं पर उस तरफ से हाँ नहीं 
और मैं मरता नहीं क्यूँ ये निकलती जाँ नहीं 

दर्द को बस दर्द दो ये दर्द ही मर जाएगा 
मैं मरा मुझसे, मुझे मारा कोई शैताँ नही 

हाँ मेरे जन्नत के दरवाजे की तुम हो रहगुज़र 
पर हकीकत जो कहें हम दो बदन इक जाँ नहीं 

लो लुटा लो प्यार मुझपर खूब ही बोसे मगर 
जो मिला पहली दफा वैसा कोई बोसा नहीं 

तू बहुत नाजुक है मेरे यार तू बाहर न आ 
दिल बहुत नादान है तू ये शहर नादाँ नहीं  

और तू कहता है वो हिन्दू जनी मुस्लिम जनी 
माएँ इंसा ही जनी हिन्दू नहीं मौला नहीं 

एक माँ से हैं नहीं रिश्ते में हैं भाई - बहन 
इस तरह रिश्ते निभाना भी यहाँ आसाँ नहीं 

जिन्दगी के पेचो - खम  में ही बहुत उलझे रहे
जो उठाया हूँ कलम गज़लें लिखी उन्वाँ नहीं 

कूच कर ले ऐ फकीरे! इस नगर से आज ही 
भूख से मर जाएगा इतना शहर अच्छा नहीं

भीगता ही रह गया मै रात - दिन बादल तले 
बह गये सारे शहर अब तक बहे अरमाँ नहीं 

बाँध लो घुँघरू, सजाओ महफिलें, रश्के कमर 
और मैं पीता रहूँ जब तक बुझे शम्माँ नहीं 

बस हसीनाओं की ज़ुल्फ़ों को संवारें रात - दिन 
सोचना फिर सोचना ऐसा ये हिन्दोस्ताँ नहीं 

पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख



ये भरी कश्ती, भरा सावन, भरे मौसम तू देख
पैरहन क्या देखता है? देखना है मन को देख

फ़ुरकत - ए - गम में बहुत मशगूल हूँ मैं रात - दिन
तू कहीं भी देख पर मेरा दिल - ओ - आँगन तो देख

आ गया बनकर भिखारी आज तेरे द्वार पर
भीख़ देने के बहाने आ इसी कारण तो देख

हिज्र ने हैवान से इंसा बना डाला मुझे
ख़्वाब में जीना सिखाया भर गया दामन तो देख

बेटियाँ इक्कीस की हैं और पेशा कुछ नही
मुश्किलों के दौर को जीता हुआ आदम तो देख

ईद की ईदी हुई है रौशनी को देखकर
बेखबर सौहर चमकते चाँद सा साजन तो देख

दिल के छालों को निकाला रख दिया बाज़ार में
वाहवाही से भरा ज़ालिम ये वो आलम तो देख

शबनमीं शामें, धड़कते दिल, हँसी चेहरों के बीच
ये बदलते मौसमों के मौसमी बालम तू देख

देखने को जा रहा था मैं हंसी दरिया मगर
एक यायावर पुकारा " नील " ये मातम तो देख


12/08/2019

पन्द्रह अगस्त



पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त, पन्द्रह अगस्त
कहने को देश कृषक का है, दिखते हैं सारे कृषक त्रस्त ।

खेतों को आँसू से सीचूँ या कहो लहू से भर दूँ मैं
या आग लगाऊँ वृन्तों में, विपिनों को भस्मित कर दूँ मैं
कितनी डी.ए.पी और यूरिया भाँति - भाँति की खादे हैं
मरने वाले उन कृषक भाइयों की कितनी सौगातें हैं

बचपन से देख रहा हूँ कृषकों का चेहरा दिखा पस्त ।

घर से निकले सारे भाई औ' ज्यों ही पहुँचे सीमा पर
तड़तड़ - तड़तड़ गोलियाँ चली निकला है लहू पसीना पर
अन्तिम साँसों तक लड़े वीर सैनिक बस रक्षा की ख़ातिर
अक्सर कुर्बानी देते हैं अपनी भारत माँ की ख़ातिर

वो लोग अभी न घर पहुँचे सूरज देखो हो गया अस्त ।

जो पाँच साल की बच्ची से हो रहा है दुर्व्यवहार यहाँ
ये लोकतंत्र लेकर ढ़ोऊँ ? क्या देखूँ मैं संस्कार यहाँ?
हाँ बलात्कार पे बलात्कार होते रहते हैं आये दिन
कर देंगे भ्रूण - मृत्यु लेकिन जीना चाहेंगे बिटिया बिन

बच्चियाँ मौत के घाट हुई, हैं बहन, बेटियाँ पड़ी लस्त ।

कम्प्लेन हुई थी पहले दिन अब तक अपराधी मिला नहीं
बस इसी बात का दुःख मुझे उनको कोई भी गिला नहीं
खा लिये पान करते पिच् - पिच् चौराहों पर गाली बकते
झूठे चालान बनाते हैं ऊपरी खर्च अन्दर रखते

खा खाकर सरकारी पैसा है पुलिस यहाँ की मटरगस्त ।

जो रीत जहाँ की है यारों वो रीत चली ही आएगी
सबका है सबसे प्रेम यहाँ तो प्रीत चली ही आएगी
रह गया स्तब्ध जब भी आया देखा करके मैं आँख बन्द
इस भारतीय सम्बन्धों में दिखता मुझको ऐसा प्रबन्ध

सदियों से पड़ती आई है अब भी फाइल पे पड़ी डस्ट ।

मैं नमन करूँगा उन सबको जो हैं इसपर बलिदान दिये
नेता, मंत्री, सैनिक, जन हों जो भी इसका सम्मान किये
पर उन्हें कभी न छोड़ूँगा जिनके हैं पेट बड़े भारी
है मिलीभगत इन लोगों में खाते रहते पारापारी

ये लोकतांत्रिक - देश यहाँ नेता, मंत्री हैं सदा मस्त ।


08/08/2019

ये हिन्दू - मुस्लिम के बच्चे एक नहीं हो पाएँगे


कविताएँ लिख - लिख मर जाओ नेक नहीं हो पाएँगे 
ये हिन्दू - मुस्लिम के बच्चे एक नहीं हो पाएँगे 

संस्कारों की चादर तानों वादों के फरमान गढ़ो
ईश्वर - अल्लाह रोज मनाओ गीता और कुरान पढ़ो
कितना भी कुछ कर ले यारा! देख, नहीं हो पाएँगे 

पुनर्नवा करते करते ही अभिज्ञान हो जाएगा 
दोनों में फिर युद्ध छिड़ेगा सब श्मशान हो जाएगा 
रक्ताप्लावित होगा कुछ अवशेष नहीं हो पाएँगे 

संविधान कठपुतली होगा शोकगीत बन जाएगा 
हम हिन्दू हैं, हम मुस्लिम हैं यही महज़ हो पाएगा 
इसी देश में ईद और अभिषेक नहीं हो पाएँगे 

मुखिया हैं दोनों पक्षों में दोनों का खूँ खौल रहा 
धरती भी कम्पन करती है काल आग जब बोल रहा 
एक म्यान में दो तलवारें फेंक, नहीं हो पाएँगे 

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...