26/12/2016

नववर्ष ( गीत )

नवजीवन हो नये वर्ष में
भरे सदा उजियारा ।
रहे सदा उत्तुड़्ग श्रृड़्ग
पर भारतवर्ष हमारा ।।

संस्कृति ,संस्कृत
सत्य,सनातन
की ज्योति
जल जाए,
खग ,विहंग उल्लसित
व्योम में ,
नदियाँ गीत सुनाएँ
ऐसा हो सद्भाव
जगत में,
सब में भाईचारा ।

इक माँ का
आँचल पकड़ें
छूटे भी गिर
न पाएँ,
दूजी माँ है
गोद पसारे
निडर गिरें
उठ जाएँ
धन्य हुआ ऐसी
माँ पाकर,
जीवन धन्य हमारा ।

गंगा,यमुना
हिमगिरि,पर्वत
को सब मिलें
बचाएँ,
मानवता लाएँ
जीवन में
हम मानव बन जाएँ
पशु,पक्षी की
रक्षा कर ,
हम उनका बनें सहारा ।

गीत बनाएँ,मीत बनाएँ
प्रीति बढ़ाते
जाएँ,
धरती से आकाश
तलक,यह
रीति बढ़ाते जाएँ,
ऐसा सुन्दर
काम करें
चमके यह चाँद ,सितारा ।।

उज्वल हो भविष्य
नित सुन्दर
कलियाँ खिलती जाएँ,
मधुर,मनोहर
राष्ट्र देखकर
देव वहाँ मुस्काएँ
ऐसा राष्ट्र चमत्कृत
हो,
हो देवलोक से प्यारा ।।

नवजीवन हो नये वर्ष में
भरे सदा उजियारा ।
रहे सदा उत्तुड़्ग श्रृड़्ग
पर भारतवर्ष हमारा ।।


21/12/2016

स्त्रियों !

स्त्रियों,
क्या चाहती हो ?
हमेशा की तरह अब भी
पुरुषों के तलवों तले रहना
उनके हाँ में हाँ मिलाना
या खुद को अधिकृत समझ ली हो उनका ।

जो द्वापर से लेकर आज तक
फाड़ते आ रहे हैं तुम्हारे चीर
और लगातार फाड़ते जा रहे हैं
निडर और निर्भीक,
क्या तुम्हारी चुप्पी कभी नही टूटने वाली ।

क्या तुम्हारा सिर्फ़ इसलिए जन्म हुआ है
कि सज , सँवर सको
लाली , लिप्स्टिक और काजल जैसे
तमाम तरह के पदार्थों से
सुन्दर दिख सको
या तुमने समझ लिया है
कि नही है तुम्हारा कोई अस्तित्व
इस समाज के भीतर
मात्र बच्चा पैदा करने की मशीन बनने के सिवा ।

क्या यह अधकचरा
डर भरा जीवन
तुम्हें सुख देता है ।
यदि नही तो आवाज ही नही
साथ ही उठाओ तलवार भी
और उतार दो उनको मौत के घाट
जो तुम्हारी अस्मिता को आँच दें,
उतारें तुम्हारी इज्जत सरेबाजार ।

मत रखो अपेक्षा मुझ जैसे
कायरों से,
मानसिकता के साथ - साथ
मजबूत करो अपनी देह भी
नही तो भकोस जाएँगें
तुम्हारा पूरा का पूरा समाज
जैसे
काटते हैं कसाई बेतरतीब सीधी गायों को ।।

17/12/2016

फल

खा लिया है सूखी रोटियाँ
नमक और मिर्च की चटनी के साथ
चल दिया है अपने खेतों की ओर
दाएँ कंधे पर फावड़ा और
बाएँ पर रख एक मटमैला गमछा
गाए जा रहा है,
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है ।।

बारहों मास बिन थकान
सुबह,दोपहर,शाम
करता रहता है काम ।

डटकर  लड़ता है गर्मियों की
लू से और सर्दियों के थपेड़ो से
कभी सूखा तो कभी
मूसलधार बारिश जैसे
दैवीय प्रकोप भी सहना पड़ता है उसे ।।

तनिक भी नही अखरता उसे
खेतों में काम करना ,
अपने पसीने से सींचते हैं खेत
जैसे एक माँ सींचती है स्तनों से
अपने बच्चों का पेट ।।

भरसक करते हैं मेहनत,
खेत को उर्वरा बनाने के लिए
बीज बोने के लिए
फसल की अच्छी पैदावार के लिए ...

कर्म करते - करते निकल जाते हैं
सालो साल
खोलते ही आँख गर्त में दिखता
वर्तमान काल ।।

सूख गए हैं आँसू आँखों में ही
उधड़ गई हैं चमड़ियाँ काम करते - करते
झुक गए हैं कंधे दुनिया के बोझ से
गरबीली गरीबी से आँखों में भरा डर
रस्सी से लटका देता है उनका सर
और यही फल है इन शासनों में
रस्सी से लटकता हुआ किसान .........

12/12/2016

आसान ये कहाँ है ( गज़ल )

तुम मुझको भुला पाओ ,
आसान ये कहाँ है
मैं तुम तक पहुँच पाऊँ
आसान ये कहाँ है

हसरत भरा हृदय है
खामोशियाँ हैं , लब पे
चिलमन से झाँकना यूँ
आसान ये कहाँ है

रातें ये शबनमी हैं
दिन भी है सूफियाना
पर दोपहर में तपना
आसान ये कहाँ है

चेहरे पे लट बिछाकर
सोई थी छाँव में तुम
हाँथों से लट हटाना
आसान ये कहाँ है

रंगीन है हँथेली
मेंहदी की खुशबुओं से
चेहरे का नूर होना
आसान ये कहाँ है

होंठो पे सुरमयी से
जो बाँध आ बँधे हैं
उनको यूँ गुनगुनाना
आसान ये कहाँ है

भटका हूँ राह में पर
फिर मैं सम्हल गया हूँ
तुमको ही भूल पाना
आसान ये कहाँ है

तुम मुझको भुला पाओ
आसान ये कहाँ है
मैं तुम तक पहुँच पाऊँ
आसान ये कहाँ है
आसान ये कहाँ है
आसान ये .....है 

30/11/2016

अच्छे दिन

सुनिए ,
अच्छे दिन आ गये हैं
पर किसी से कुछ कहियेगा नही

सैनिक घटते जा रहे हैं
सरहदों से
जैसे खेतों से घटती जा
रही है उपज अनाज की ।।

सड़कें उखड़ती जा रही हैं
हो चुका है यातायात अवरुद्ध
बनारस की चौड़ी और
फोर लेन्थ की सड़कों पर भी ।।

आठ - दश साल के बच्चे
भूँज रहे हैं भूँजा लगातार
भूँजे के साथ अपना पूरा बचपन
आग की धधकती आँच में ।।

कुछ दौड़ रहे हैं
घाट की ऊँची - नीची सीढ़ियों पर बेहिचक
चाय की केतली हाँथों में लेकर
वहीं
कुछ चार - पाँच साल की लड़कियाँ
दिखा रही हैं करतब
पूरी धरती को अपने में समेटती हुई ,
बजा रही हैं ढोल
गाए जा रही हैं भोजपुरी के
अश्लील गाने घाटों पर
पेट के लिए ,
दो वक्त की रोटी के लिए ।।

आत्महत्या करते जा रहे हैं
किसान ,
दिन पर दिन बढ़ती जा रही है इनकी संख्या
मगर ये आत्महत्या नही
हत्याएँ हैं,
और हत्यारे घूम रहे हैं सरेबाजार
किसानों के हित की तोंदियल
बातें बतियाते हुए
निर्द्वन्द और निर्भीक ।।

भिखारी दर - दर खड़े हैं
हाँथ में कटोरा लेकर
कम से कम
एक रुपये की माँग के साथ ।।

गंगा की उफनाती लहरें
आती हैं पूरे वेग से
पैर से टकरा कर हो जाती हैं
शान्त
प्रकट करती हैं विरोध
मुझे अपना मान ,
गंगा अभियान वाले मुँहबोलों के खिलाफ ।।

नही बदला है कुछ भी ,
वही है दिन , वही रात
गद्दी वही है
वही है राज्य
जनता भी वही भोली - भाली
बस बदले हैं तरीके
बदले हैं राजघराने के लोग
और बदल गये हैं राजा
जिनके अच्छे दिन चल रहे हैं ।।


The poem has been selected in
magazine of kaksaad ..
Thank you sir,
Thank you my friend's..


सृष्टि का निर्माण कर दूँगा प्रिये ! वादा मेरा है

सृष्टि का निर्माण कर दूँगा प्रिये !वादा मेरा है ।
तुम नही रोओ कि रोएगा जहाँ वादा मेरा है ।।

अब हवाएँ मुक्त होंगी सृष्टि के उल्लास में 
साथ तुम मेरे रहोगी माह उस मधुमास में 
चाहता हूँ साथ मैं अपने हृदय की संगिनी का 
जिस तरह से साथ है अम्बुधि का अमरतरंगिनी का 
आज कैसे छोड़ दूँ ऐसे गलीचों में तुम्हें 
फिर मिलेंगे दिव्य इन्दीवर बगीचों में तुम्हें ।

व्योम से निर्झर गिरेंगी बूँद ये वादा मेरा है ।।

आज होंठों को सजाकर इस हृदय से दूर हो 
या कि कोई है समस्या आज क्यों ? मजबूर हो 
तुम चलो तुमको दिखाऊँ चन्द्रमा उस छोर में
शीत रश्मि गिर रही है उस दिशा, उस ओर में
यूँ फँसे हैं आज कम्पित हो रहा है मन मेरा 
यूँ हुई बारिश शहर ,घर भीगता आँगन मेरा ।

साथ दूँगा मैं सदा मजधार में वादा मेरा है ।।

है तमन्ना कुछ नही अब ये जगत मैं छोड़ दूँ 
मैं रहूँ इक तुम रहो बस जिन्दगी को मोड़ दूँ
आँख का आँसू बनूँ मैं इस कदर उलझा रहूँ 
तू नजर के सामने रह मैं सदा सुलझा रहूँ
जिन्दगी वीराँ नही हो एक - दूजे के लिये
दिन,महीने,साल हों आशिक मरीजे के लिये ।

डूब जाऊँगा तुम्हारे प्यार में वादा मेरा है ।।

मैं सदा सोऊँ तुम्हारी जुल्फ की छैयाँ तले
आज आ जाओ यहाँ सब छोड़ लग जाओ गले
जिन्दगी ये है समर्पित तुम कहो क्या कह रही
यह मिलन की वार्ता सुन मन्द वायु बह रही
फिर कहो मेरी प्रिये किस बात की अब देर है
सत्य कहता हूँ प्रिये ! ये न गज़ल, न शेर है ।

दो हृदय का मेल हो जाएगा ये वादा मेरा है ।।

काव्य के झंकृत स्वरों को मान दे दूँ  मैं अभी
दिव्य उर की कल्पना सम्मान दे दूँ मैं अभी
हाँथ जो इक बार पकड़े फिर नही छोड़ेगें हम 
साथ कदमों से तुम्हारे मिल चलेंगें ये कदम 
मैं नही इन वर्जनाओं को करूँ स्वीकार अब
हाँथ यूँ पकड़ो मेरा मैं त्याग दूँ संसार सब ।

जिन्दगी भर साथ न छोडूँगा ये वादा मेरा है ।।


27/11/2016

आपदा और किसान

आपदाएँ ,
मार देती हैं किसानों को
ख़त्म कर देती हैं उनकी जिन्दगी
बरबाद कर देती हैं सारी फसल ।
किसानों के दारुण हृदय की दर्द भरी
आवाज़
हृदय को झकझोर देने वाली ,
आह....
इस ध्वनि से अथवा
किसी भयानक - बवंडर के आ जाने के
बाद का वह भयावह दृश्य,
जो एक किसान को उसके माथे पे हाँथ रखने पर
मजबूर कर देता है,
और नैसर्गिकतया, न चाहते हुए भी
मुख से हाय यह शब्द निकल जाता है ।

टूट जाता है,
सारे सपनों को टूटते हुए देख
बच्चे की फीस ,अम्मा और बाबू जी के लिए दवाइयाँ
अगले माह बिटिया की सगाई
उसके लिए जेवर थोड़े बहुत
दहेज में गाड़ी,
उसके साथ पचास हजार नगद जैसे कई
जरूरी सपने
पर वह हार नही मानता
फिर से किसी के ढ़ाढस बंधाने पर खुद को मजबूत
करते हुए,
अपनी दूसरी फसल के बारे में सोंचने लगता है
किसान,
जैसे प्रथम पुत्र के मरणोपरांत दूसरे पुत्र के
बारे में सोंचते हैं लोग
और प्रवृत्त हो जाता है दूसरी फसल की
जुताई ,बुआई ,रोपाई में
पुनः लहलहाती फसलें खेतों में लहराने लगती हैं
किसान के चेहरे की वह प्रसन्नता जो
शदियों से खोई थी ,
आज देखने को मिली उसके चेहरे पर  ।
अब वह नही चाहता इनसे दूर जाना
तनिक देर भी,
लगा रहता है निराई , गोड़ाई में ,
स्पर्श करता है जब उन फसलों की
बालियों को ,
लगता है पुचकार रहा हो अपने 2 साल के
पोते को जिससे निकलने लगी है
तुतलाहट भरी आवाज़ ,
कुछ ही दिनों के भीतर भर देता है
सारा कर्ज ,
लोग कहते हैं वो देखो जा रहा है किसान
जो कभी सदमे में था ।।

22/11/2016

खाये जा रहे हैं

खाये जा रहे हैं ,
जैसे खाते हैं लकड़ियों को घुन
वैसे ही खाये जा रहे हैं
किसानों के खेत ,
बिके जा रहे हैं
अनाज सेंत ,
अभी और न जाने क्या क्या
खायेंगे,
खाये जा रहे हैं ,
बाग़ बगीचे फूल और फल
चबाये जा रहे हैं
हरी भरी पत्तियाँ ,
धीरे धीरे बढ़ रही है
गति,
खाने की

जब से बेंच दिये हैं
अपना वजूद ,
भूल गये हैं अपनी अहमियत
एकाएक ,
यह बदलाव
कहीं खा न जाए
गाँव ,घर
पूरा का पूरा
शहर

कहीं बेंचनी न पड़ जाये
या बेंच दें आबरू
बहन और बेटियों की
कहीं नीलाम न कर दें
माँ की इज्जत
खाने ख़ातिर

कहीं साजिस न
रची जा रही हो
हमारे प्रदेश ,देश
और
समूचे राष्ट्र को
खाने की।।

उजड़ा घर

जितना उड़ पाओ उड़ लो तुम
दो पल के जगजीवन में
औंधे मुँह गिर जाओगे
फिर उसी किसानी भोजन में

गहन अँधेरे में आँखें
आखिर कैसे खुल पाएँगी
सपने जैसे टूटेंगे
फिर रोएँगी ,चिल्लाएंगी

बाजारों से भोजन लाओ
घर में न इक दाना है
पानी लाने अम्मा के संग
बहुत दूर तक जाना है

बहन हमारी छोटी सी
क्यों ? रोती है,चिल्लाती है
मुँह में मिट्टी डाल ,उसे
क्यों ?कूँच कूँच के खाती है

पिता गए बाजार वहाँ से
कुछ तो वो लाते होंगे
रो मत बहना !धीरज रख
अब साँझ हुई आते होंगे

जब तक लाते बाजारों से
चक्कर आया गिरी उधर
मेरी प्यारी भोली बहना
गई हाँथ में मेरे मर

पिता देख तड़पा ,चिल्लाया
बोला बेटी खाले तू
उठ उठ बैठ मेरी बिटिया
थोड़ा सा भोजन पाले तू

नहीं किया भोजन भाई भी
सारा दिन वह रहा उदास
सर्दी ,सर्द हवा से वह,सब
छोड़ चला बहना के पास

कैसे दिल आशीष तुम्हें दे
बच्चों के हत्यारे तुम
मेरे बेटे कहाँ गये
जीवन के चाँद सितारे तुम

माता-पिता अधीर हुए
दोनों नें आज लिया सल्फ़ास
आज गरीबी नें कर दी है
चार चार लोगों को लाश

हाँथ जोड़कर प्यारी बातें
घर घर वो बतियाते हैं
'मेक इंडिया' कहने वाले
कब तबके में आते हैं

14/11/2016

चलती लाश

मरे आदमी औरत टूटी
बुझता गया उजास
रोज़ मुझे दिख जाती है
सड़कों पे चलती लाश

काट दिये हैं सारे उपवन
तड़प रहा हूँ मैं ,मेरा मन
बिलकुल सूनसान ,निर्जन वह
खाली पड़ा अकाश

जला नहीं अब तक घर चूल्हा
टूट गया है चल चल कूल्हा
रहे बांटते बिजली, पानी
फिर भी बुझी न प्यास

बच्चे ऐसा सिला दिये हैं
मिट्टी में सब मिला दिये हैं
रहें ख़ुशी से हरदम प्यारे
वो करती उपवास

आज लगा कि स्थिर हूँ मैं
आँख में उनके गहन तिमिर मैं
बच्चों के सुख की ख़ातिर ,
अब ले लूँ मैं सन्यास

लूला लंगड़ा काना है वो
बच्चा नहीं सयाना है वो
उससे दुर्व्यवहार करें
करते उसका उपहास

पेट पीठ पाषाण हुये हैं
कोई लघु परिमाण हुये हैं
हैं  अनाज न खेत में
चक्की रही उदास

तरुणाई भी न आ पाई
दर्द बहुत लोगों से पाई
मेरी मुनिया मर गई
तड़प तड़प कर आज

मस्त रहा है वो अपने में
बिखरे कुछ टूटे सपने में
''नील'' धरा का बैरागी है
रही न कोई आश   

08/11/2016

सफ़र में जिन्दगी नीलाम कर दी

सुबह ख़्वाबों में आई शाम कर दी
भरी महफ़िल में उसने जाम भर दी

मरे अब तक नहीं हम रोज़ मरकर
सफ़र में जिन्दगी नीलाम कर दी

बड़ी शिद्दत से जिसको चाहता था
उसी नें आशिकी बदनाम कर दी

नशा अब तक चढ़ा है यूँ मेरे सर
मुझे यह बेरुख़ी वीरान कर दी

बड़ी हसरत भरी थी इस हृदय में
मुझे इक पल में वो अन्जान कर दी

अहिंसा के पुजारी बन गये हैं
कि जब से वो हृदय शमशान कर दी

कि अब ये दूरियाँ मिट पाएँ कैसे
बना दुश्मन वो पाकिस्तान कर दी

अधूरी जिन्दगी मैं ढूढता हूँ
कहाँ ये जिन्दगी कुर्बान कर दी 

बुरा लगता है

बुरा लगता है,
जब कोई कोशिश करे उतारने की
चेहरे पर लगे हुए मुखौटे को
तब बुरा लगता है।
फिर चाहे हों मित्र ,बन्धु
पिता माता या हो कोई और।

और बहुत बुरा लगता है तब
जब कोई कमेंट्स करे अपनी बहन पे ,
देखकर बजाये सीटियाँ या
खींच लिया हो दुपट्टा ,
फाड़ दिए हों कपड़े सरेराह
मन होता उतार दूँ पूरा का पूरा
ख़न्जर उसके हृदय में ,
तोड़ दूँ बत्तीसों दाँत या
तोड़ कर हाँथ - पैर बैठा दूँ साले को
अधमरा कर दूँ ,
ताकि दुबारा वह किसी से बोलने में भी
काँप उठे।
पर बुरा नहीं लगता तब जब हम स्वयं किसी की
बहन बेटी या बहू पे डाल रहे होते हैं डोरे
या पास कर रहे होते हैं ढ़ेर सारे भद्दे कमेंट्स

बुरा लगता है ,
जब मजाक ही सही कोई प्रयोग करे प्रेमिका
के लिए वो शब्द ,
जो वह स्वयं प्रयोग करता हो
किसी दूसरे की प्रेमिकाओं के लिए
मॉल और भौजी जैसे शब्द ,
जब उन्ही का प्रयोग होने लगे स्वयं पर
तब बुरा लगता है।

और बुरा लगता है तब ,
जब यथार्थ के धरातल पर लाकर पटक दे कोई ,
दिखा दे तुम्हारी नग्नता भरी तस्वीर ,
तुम्हारे एकटक देखते रहने का कोई कर
दे विरोध या
दे दे गालियाँ ,
लगे तुम्हारी धज्जियाँ उड़ाने तुम्हारे ही
किये गए कारनामों पर ,
बात - बात में तुम्हें दिखाने लगे नीचा
और ,
अपना होकर जब कोई अपनेपन का अहसास
न होने दे तब ,
उसे ही नही मुझे भी
बुरा लगता है।।

नक्कटी जनता और हम

 जितनी नक्कटी है ये जनता
 उतने ही नक्कटे हैं हम।
 जो पहुँच जाते हैं ,
हर साल छह महीने के भीतर ही
कइयों मंच पर
जहाँ से देते हैं कइयों मौलिक विचार ।

समझाते हैं देश - दुनिया की बातें
खोलते हैं पोल नेता की
मंत्री की,
और इस बेलगाम कानून की ,
ले आते हैं सामने समाज में छिपी हुई
बुराइयों को,
करते हैं जनता के हित की बातें ।

मगर हमारी जनता ,
हमारे ही विचारों की अर्थियाँ उठाने में
अपना वक़्त ज़ाया नही करती।
वो बस पीट देती है तालियाँ
और अगर
कहीं कविता हो प्रेम पे तब देखो
इन तमाशबीनों की बजती हुई सीटियाँ ।

छेड़ दो दो - चार शेर
सुनते रहो अपने जुमलों पर जनता की वाहवाही।
क्योंकि आज की जनता को विचार नहीं
आनन्द चाहिए।
जिसके लिए हमें खरीदा जाता है चंद पैसों में ।

चंद पैसों के लालच और अपनी
शानो - शौकत के
लिए बिक जाते हैं हम।।

24/10/2016

आतंकवादी

बहुत ही बेख़ौफ़ आँखें थी उसकी
जिसमें कभी ख़ौफ़ भरा था
बड़ी कातरता से देखती थी
बचपन में ,
दूसरे के हाँथो की रोटियाँ।
आग की लपट आती है
अब ,
उन्हीं आँखों से
जैसे ,सबकुछ जलाकर राख़ कर देंगी
वे आँखें,
जिनमें मुझे दिख रहा था
बारूद ,गोले और ज़लज़लों का
सैलाब।
कई यातनायें सह चुकी थी उसकी शरीर
बहुत सारे कष्ट उठा चुकी थी।

शायद ,
नहीं मिला हो उसे
माँ और बाबू जी का प्यार
किसी नें बचपन में ही पकड़ा दिया हो हथियार
सिखाया गया हो उन्हें शुरू से ही
मार - काट। 
भर दिया गया हो उसका दिमाग़
अनाप सनाप के सवालों से
बना दिया गया हो
उन्हें देश का दुश्मन
कइयों लालच दे देकर
जोड़ दी गई हों कई पाक़ चीज़ें ,
उन नापाक कार्यों में
जिसमें ईश्वर,अल्लाह जन्नत और नर्क
जैसी लुभावनी बातें हों।
जोड़ दी गई होंगी बातें हिन्दू और मुस्लिम वाद की
विरोध की ,
प्रतिशोध की ,
भरे गये होंगे कान एक - दूसरे के प्रति
तबाही के प्रति , उसकी बर्बादी के प्रति ,

उनके आकाओं नें
नही सिखाया होगा उन्हें साम्यवाद का ज्ञान ,
नही पढ़ाई होगी उन्हें गीता ,
नही पढ़ाया गया होगा उन्हें कुरान।
पकड़ा दिये होंगे उन्हें
A.K 47 जैसा रिवाल्वर
भरी होंगी गोलियाँ
बम बारूदों कट्टों और मशीनगनों से शांति फैला देते हैं पूरे शहर में।
बर्बाद हो जाता है पूरा का पूरा शहर
तबाह हो जाता है पूरा मंज़र
तड़तड़ाती निकलती हैं गोलियाँ
सीनों को भेदने के लिये ,
उन्हीं गरीब ,सताये ,तड़पाये और
पीड़ितों की बन्दूकों से।
जिनकी बचपन में छिन जाती है आज़ादी ,
उन्हें ही बाद में हम कहते हैं आतंकवादी।।

18/10/2016

न्याय के विरूद्ध

टूट जाती है उसकी कमर
गिर जाती है
गिड़गिड़ाते ,
भागते ,
रेंगते
हुए
किसी अदालत की चौखट पे
उन चिंथे हुए
कपड़ों में ,
जिनमें दिख रही है
उसकी पूरी की पूरी
नंगी शरीर ,
जिसे लोग
बड़ी ही उत्सुकता से देखते हैं।

खटखटाती है अदालत का दरवाजा
और
कुछ बिन खटखटाये ही
तोड़ देती हैं दम।

सुनी जाती हैं बातें
दोनों पक्षों की
पर उधेड़ी जाती हैं
बची - खुची चमड़ियां
कुछ पैसों से
दबे हुए
वकीलों के अनैतिक सवालों से
ऐसे न्याय से ,
जिसे मैं स्पष्ट और शुद्ध लिखता हूँ।
इसीलिए ऐसे न्याय के विरूद्ध लिखता हूँ।।

16/10/2016

कविता बीमार पड़ी

कविताओं की आपाधापी में
कविता बीमार पड़ी।
पूरी सत्ता लचर गई है
कलम आज बेकार पड़ी।।

बेटे जन्म दिये सुख काटी
अपनी सारी खुशियाँ बाँटी
आज हुई वो बुढ़िया जैसे ,
खटिया पे लाचार पड़ी।।

ठण्डी से वह ठिठुर गई थी
सिमटी थी ,वो बटुर गई थी।
तन पे लत्ता एक नही था ,
उसे सर्द की मार पड़ी।।

सरहद पे हैं चली गोलियाँ
खाली कर दी,भरी झोलियाँ।
देख सकी न हिन्दू,मुस्लिम
दिल पे गोली चार पड़ी।।

सारे कपड़े चीर दिये थे
चोट बहुत गम्भीर दिये थे।
ऐसा हश्र किये हैं उसका,
मृत आधी बेदार पड़ी।।

लाल सायरन बजा रहे हैं
नीली बत्ती जला रहे हैं।
नंगी लाश मिली है मुझको
जो थी गंगा-पार पड़ी।।

कब तक आखिर लड़े लड़ाई
कब तक ऐसी करें पढ़ाई।
मुझको रास नही आती है
औंधे मुँह सरकार पड़ी।।


13/10/2016

चलो फिर युद्ध करते हैं

चलो फिर युद्ध करते हैं।

धरा की टूटती है नब्ज ,
इसको शुद्ध करते हैं।।

शजर की छाँव में भी
धूप सी है
यहाँ भीतर छुपी बन्दूक
सी है
 यहाँ कब तक उठाएँगे
शहीदों की चिताएँ
चलो अब साथ एटम बम
बनाएँ
लहू वीरों का अपने
बह रहा है
हमारा पुण्य भारत-वर्ष
हमसे कह रहा है
चलो फिर से उठाते
आज गोले
चलो बन जाएँ हम
बारूद , शोले
यहाँ जो शांत से हैं दिख रहे ,
उन्हें फिर क्रुद्ध करते हैं।

हमारी पीठ पे खन्जर
दिये जो
हमारा घर , शहर बन्जर
किये जो
चलो हम आज फिर
उनको बुलाएँ
नही , उनके यहाँ
उनको सुलाएँ
यहाँ रोते , बिलखते
चीखते सब
यहाँ पाषाण , मृत से
दीखते सब
चलो चूड़ी उतारो
हाँथ में हथियार लो
कि सारा प्यार त्यागो
इक नया अवतार लो
बहुत वो हँस लिए हैं  ,
उन्हें अब क्षुब्ध करते हैं।।

चलो फिर युद्ध करते हैं।

10/10/2016

मजदूर

हर शहर में हर गली में
बोझ जो ढोता रहा।
वो ख़ुशी न देख पाया
बीज जो बोता रहा।।

बीज बोया की निराई
की पसीने से सिंचाई ,
बस फसल इक वो न पाया
खेत जो जोता रहा।।

तुम चलो तुमको दिखाते हैं
बड़ों की बिल्डिगों में।
वो अभी भी हो रहा है
जो कभी होता रहा।।

जिन गरीबों के पसीने
से चमकते घर यहाँ।
वो खुशी से झूमते हैं
वो सदा रोता रहा।।

हाँथ में कुल्हाड़ियाँ हों
हों हथौड़े साथ जब
ख़्वाब सारे मर गये थे
वो नही खोता रहा।।

व्यर्थ की संभावनाओं में-
बड़ा मशगूल था।
वो कहाँ हीरे कमाया
जो लगा गोते रहा।।

रोज जाकर माँग लाता है
घरों घर घूम के।
थे नही कपड़े बदन पे
और वो धोता रहा।।

हर घड़ी हर वक़्त जो है
लक्ष्य भेदन पर अडिग।
सो रहे थे लोग जिस पल
वो नही सोता रहा।।
 

07/10/2016

चल चिरैय्या उड़ हम आज उस नीले गगन में 'गीत'

चल चिरैय्या उड़ हम आज  उस नीले गगन में

हों जहाँ हिन्दू न मुस्लिम ,
हो जहाँ न मौत का  भय
हो जहाँ न दोस्ती ,
न दुश्मनी ही हो किसी से
आज हम संकल्प लेते हैं चलेंगे उस चमन  में।

हो जहाँ न द्वेष कोई
न रहे अनुराग ही
वो जहाँ बम के धमाकों
की नहीं आवाज़ ही
आओ चलते हैं सुनहरे शान्त उस वातावरण में।

हों नही वादे किसी से
और न  टूट पाएँ ,
हों अकेले साथ तेरे
और ये  जीवन सजाएँ
हाँथ अब पकड़ो मेरा मुझको उड़ा लो उस पवन में।

हो नही दिन में अँधेरा
न रहे उजड़ा सबेरा
ले चलो  मुझको उड़ा के
हो  जहाँ परियों का डेरा
साथ तुम मेरे रहो उस दिव्य सूरज की किरण में।

चल चिरैय्या उड़ हम आज  उस नीले गगन में।।

तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं

कहीं सजता हुआ कोई शहर है
समुन्दर में मचलती वो लहर है

लगा है  चित्त हिचकोले लगाने
तुम्हारी याद है या ये कहर  है

तुम्हारा  स्वप्न बन मैं  आ रहा हूँ
मेरे  जीवन बड़ा  लंबा सफ़र है

दबे  पैरों से रेतों पर  चली क्यों
मेरी जन्नत !अभी  तो  दोपहर है

नहीं अब घर बनाऊंगा स्वयं का
तुम्हारे दिल में जो मेरा बसर है

मेरे होंठों के मद्धम हैं दबे से
तुम्हारी उँगलियाँ हैं या अधर है

तेरी यादों के साये से घिरा हूँ
तड़पता मन मेरा शामो - सहर है

यहाँ जो कल्पनाएँ हो रही हैं
तुम्हारी ही दुआओं का असर है 

इधर तनहा ,अकेला हूँ सदा खुश
तेरी परछाइयाँ जो हमसफ़र हैं।।

29/09/2016

'' विश्वविद्यालय ''

 मालवीय जी  के प्रति -
करते न खुद पर अभिमान अविरल माँ गंगा  समान
रखते  विचार देदीप्यमान इस  सूर्य कि किरणों  के समान।
छवि उनकी सुन्दर शीतवान गगनस्थित  इन्दु के समान
इस (विश्व )विद्यालय के सम्मान हम सब मिल करते हैं प्रणाम।
                              
                             विश्वविद्यालय

विश्वविद्यालय की गरिमा को आओ सभी प्रणाम करें ,
अपनी सारी शक्ति झोंक दें और इसी का नाम करें ,
अपना हम कर्त्तव्य निभाएँ काम सुबह और शाम करें ।।

जितना पाया इस मंदिर से सब कुछ धारण कर बैठा ,
विश्वनाथ की कृपा हुई जो कविताकारक बन बैठा ,
मालवीय जी के मन्दिर का आज नील गुणगान करे ।।

सदाचरण की पावन गंगा ज्ञानरूप में बहती हैं ,
कुछ देवी जैसी प्रतिमाएँ विद्यालय में रहती हैं ,
छात्र यहाँ के दक्ष सभी गुरुजन का नित सम्मान करें ।।

जिस विद्यालय के आँगन में शीतल वो रजनीचर हैं ,
उस विद्यालय के आँगन से निकले कई प्रभाकर हैं ,
आओ सब समवेत भाव में विद्यालय को धाम करें ।।

पर्यावरण सुगन्धित, सुमधुर, पुष्पयुक्त सब पुष्कर हैं ,
संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी की वाणी बहती निर्झर है ,
इसपे अगर आँच भी आए खुद को हम नीलाम करें ।।

सदा पल्लवित होती जाए और सघन हो जाए ये ,
गायन, वादन, नृत्य देखते धरा गगन हो जाए ये ,
बगिया की हो प्रभा मनोहर, मञ्जुल और ललाम करें ।।

मुख्यद्वार है दिव्य , भव्य उसकी सुंदरता क्या गाऊँ ,
इतनी ही बस चाह रही की इसी धरा पे फिर आऊँ ,
सदा चमकता रहे स्वर्ग ये कभी नही विश्राम करें ।।

मिलती रहे प्रेरणा हम सबको ऐसे विद्यालय से ,
जीवन लक्ष्य भेद दे कुछ आशीष मिले देवालय से ,
जीवन की रंगीन सुबह का इसी धरा पे शाम करें ।।

जितना आज चमकता है इससे भी प्रखर उजाला हो ,
कभी पन्त हों, हों कबीर, तुलसी हों कभी निराला हों ,
काव्य - सृजन में कभी न्यूनता न हो कुछ आयाम करें ।।

दिव्य यहाँ के कुलपति जी की सोंच सभी अब सज्जित हों ,
उच्च शिखर पर जाएँ सारे बच्चे आज चमत्कृत हों ,
आइंस्टीन कभी हों बच्चे, उनको कभी कलाम करें ।।

विश्वमंच की पृष्ठभूमि पे इसे सजाते जाएँगे ,
सप्तसिंधु के पर सदा इसका झंडा लहराएँगे ,
यह समग्र - जग लोहा माने ऐसा कुछ अन्जाम करें ।। 

28/09/2016

'' भारत माता ''

















इस जमाने में मुझे गम्भीर सी हुंकार देना ,
रूप देना , शौर्य देना ,इक नया अवतार देना।

मैं शहीदों सा  मरूं हो जश्न पूरे देश में ,
बोल दूँ जय हिन्द बस इसके लिए पल चार देना।।

हो नही अभिमान मुझको राष्ट्र पे मैं मर मिटूँ ,
गोलियाँ सीने पे खाऊं शक्ति सब साकार देना।।

वीरगति मैं प्राप्त होऊँ इस भयंकर युद्ध में ,
पुण्य भारतवर्ष का मुझको सदा संस्कार देना।।

माँगने पर यदि मिले न छीनकर मैं खा सकूँ ,
ज़ुल्म से लड़ता रहूँ ऐसे परम अधिकार देना।।

मैं झुका न हूँ , झुकूँ न चापलूसों की तरह ,
फिर नही इस देश को आशाभरी सरकार देना।।

हे मेरी माते ! मुझे रोको नही अब जंग से ,
एक बेटा मर गया तो दूसरे को प्यार देना।।

मैं बड़ा पापी हूँ , मैं हतभाग्य बंधन सख्त हूँ ,
युद्ध के मैदान में ही माँ मुझे उद्धार देना।।

शाखे - गुल पे बैठ के मैं भी इबादत कर सकूँ ,
हिन्द का बच्चा हूँ , हिंदुस्तान में घर द्वार देना।।

मैं अगर कर्तव्य - पथ से च्युत कभी हो जाऊँ तो ,
लेखनी मेरी !मेरे कविकर्म को धिक्कार देना।।

मैं यहाँ अभिमन्यु के सम हूँ अकेला भीड़ में
'' नील '' तुम इन कायरों को अब सुदृढ़ आधार देना।।

25/09/2016

'' आप और हम ''

मैं मन्दिर आता हूँ सिर्फ़ आपको देखने ,
झलक पाने ,हाँ झलक पाने ,
ताकि मैं सुकून से रह सकूँ।
अपनी ज़िन्दगी को खुशियों से सजा सकूं ,
अपनी इच्छाओं ,मनोकामनाओं ,अभिलाषाओं को
सुन्दरतम ढंग से आयामित कर सकूँ ,अपरिमित कर सकूँ ,
अजेय कर सकूँ ,
कि शुरू हो सके इस जीवन का सबसे अहम और महत्वपूर्ण पहलू ,
शुरू हो सके जीवन में वसंत का आना और
शरद का छाना ,
हों दोनों पूर्ण चाँद पे ,चाँद की शीतलता
महसूस करते हुए ,
तुम  मुझसे कहती हो कि कुछ कहो न
(और मैं कहता हूँ )
कि मैं तुमसे क्या कहूँ
कि मैं तुम्हें कितना चाहता, प्रेम करता हूँ
मैं जहाँ भी जाऊं ,जो भी सोचूं ,कुछ भी करूँ
रोऊँ ,हसूँ ,गाऊँ ,गुनगुनाऊँ या
अपनी रचना ,कविता ,कहानी में पिरोऊँ ,
मेरी रचना में ,मेरी दुनिया में, लफ्जों में,
शब्दों में ,अर्थों में और यथार्थों में बसी हैं तुम्हारी यादें
और तुम।
इसीलिए ,
और इसीलिए  सजाता रहता हूँ अपने ही
यादों ,ख्वाबों और ख़यालों के उन गुलदस्तों को ,
जिनमें परिवेष्टित ,आच्छादित सुगन्धित हैं
आपकी महक ,
                       '' आप और हम '' 

'' तुम्हारे प्यार की पहली निशानी याद आती है ''



             तुम्हारे हुश्न की दिलकश जवानी याद आती है ,
             कि अपनी वो अधूरी सी कहानी याद आती है।

            तुम्हारा सामने आते ही मेरे बोल ना पाना ,
            कि वो बातें तुम्हारी बेज़ुबानी याद आती हैं।।

           अदाओं से ,इशारों से ,वो मेरा कत्ल कर देना ,
           तुम्हारे इश्क पे मुझको रुवानी याद आती है।।

           तुम्हारे संग बिताये पल सजे हैं चित्त में मेरे ,
           मुझे अपनी वो पावन ज़िन्दगानी याद आती है।।

           तुम्हें वो देखना स्कूल में जब प्रार्थना होती ,
           कि वो बचपन कि कुछ यादें पुरानी याद आती हैं।।

           बड़ा भोला सा था उस वक़्त जब तुम सीख देती थी  ,
           किसी से प्राप्त वो शिक्षा - सयानी याद आती है।।

           तुम्हें जब भी कभी देखा मेरी बाँहों के घेरों में ,
           कि वंशीवट कि वो राधा दीवानी याद आती हैं।। 

           आज बैठे हुए यूँ ही तुम्हारी बात जो छेड़ी,
           तुम्हारे प्यार की पहली निशानी याद आती है।। 


                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            

24/09/2016

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये

अजनबी थे ,अजनबी हैं ,अजनबी ही रह गये
पास आए थे कभी जो अजनबी वो कह गये।

आज तक मेरे ह्रदय में वास करती हैं वही ,
किस समुन्दर की लहर में छोड़ हमको बह गये।

आज रोया हूँ बहुत आँखों से नदियाँ बह रही ,
जो दिए हैं जख़्म कि मलहम लगाते रह गये।

 इबादत कर रहे थे ज़िन्दगी बर्बाद हो ,
और हम उनकी इबादत को सजाते रह गये।

फिर तकल्लुफ़ है उन्हें आखिर ये कैसी बात है ,
दे रहे थे गालियाँ हम गालियों को सह गये।

इतना हूँ बेसब्र मैं यादों में इक जीवन लिखूँ ,
यूँ  हृदय में आए के बस वो हृदय में रह गये।

दिल समुन्दर, आँख दरिया हुश्न बेपरवाह था
वो लुटाते ही रहे मुझको लुटाते रह गये ।

सर्दियों में सड़क पर

जाड़ों के दिन थे ,
कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी ,
कुछ लोग जो अपनी गर्लफ्रेंडों के साथ
गलबँहिया करते ,आ जा  रहे थे
उसी मार्ग से ,
जिस मार्ग पे पड़ी थी एक औरत ,
जिसके तन पे मात्र एक लत्ता था ,
75 साल की बुढ़िया मेरी दादी की उम्र की
जो ठीक से अब चल भी नही पाती ,
कि जा सके वह उस अलाव के पास ,
जो उससे कुछ ही दूर पर जल रहा था।

और नही निकलती है उसके मुख से आवाज़
कि वह उनसे कह सके ,
कुछ पुराने ऊनी स्वेटर और कान ढकने के लिए
एक पुराने सॉल के लिए ,
जिससे ढक सके वह अपना शरीर
और बच सके सर्दी से ,
जो अपनी गर्लफ्रेंडों पे हज़ारों खर्च कर देते हैं
शायद बेवजह।

उन्हें 75 साल की  दादी नही दिखती
ठण्ड से काँपती ,थरथराती हुई।
नही सुन पाते हैं वो उसकी आवाज़ ,
नही देख पाते हैं वो उसके व्यथित - मन
की भावनाओं को ,
जो शायद देख लेते हैं ,
बिन दिखाए ही अपनी गर्लफ्रेंड की सारी
इच्छाओं को ,सुन लेते हैं उनकी अनकही आवाज़।
देखता हूँ ,सहम जाता हूँ और जब कभी
गुज़रता  हूँ लंका से,
याद आ जाती है उन सर्दियों में सड़क पर
पड़ी उस महिला की जिसकी सहायता मैं भी
नही कर पाया था तब ,
जब उसे आवश्यकता थी मेरे सहारे की।।

किसकी है औकात

किसकी है औकात यहाँ जो छूले मेरे झण्डे को ,
मेरे देश के इस प्रतीक लहराते हुए तिरंगे को।

देश में मेरे अब भी हैं ,जाबाज सिपाही सीमा पर ,
रेडक्लिफ तोड़ के जाकर खत्म करेंगें पाकी दंगे को।।

नहीं रहेगा पाक तुम्हारा मानचित्र के नक़्शे पर ,
थोड़ी अक्ल अगर हो समझो ,बंद करो इस धंधे को।। 

अब तक तो हम शान्त रहे अब कोप चढ़ रहा मस्तक पर ,
घर में घुस के मारेंगे यदि मारे हिन्द के बन्दे को।। 

बहुत हुई अब भाषणबाजी ,भाषणबाजी बंद करो ,
मोदी जी !अब बहुत हुआ छोड़ो भी इस हथकंडे को।। 

कद छोटा है ,उम्र बहुत कम फिर भी खून उबलता है ,
फिर से याद करा दूंगा मैं हिटलर जैसे बन्दे को।।

एक मेरी माँ रोयेगी ,दूजी के गोद में सोऊँगा ,
हँसते - हँसते चूमूँगा मैं उस फांसी के फंदे को।।

कोई तुम्हें हिला सकता क्या ?हिन्दुस्तान के वीरसपूत ,
मातृ - पितृ की शक्ति है ''ऐ नील '' तुम्हारे कंधे को।।

22/09/2016

सावन के पहले सोमवार में देखो छटा निराली है

सावन के पहले सोमवार में देखो छटा निराली है ,
भँवरे भी गुन-गुन गान करें बदरी भी काली - काली है।

पत्ते पर बारिश की बूँदें मोती जैसी प्रतीत होती ,
मन्दिर के बाहर काँवरियों कि भीड़ बड़ी मतवाली है।।

हजारों , लाखों की संख्या देवालय आज है शोर करे ,
बम-बम भोले और  महादेव का गुंजन चारो ओर करे ,
बारिश के रिम-झिम आने से मधुबन में हुई दिवाली है।।

पत्तों के सुन्दरपन को मेरा देख के चित्ताकर्षित है ,
विरहीजन थोड़ा कष्ट में हैं उनको ये भाव समर्पित है ,
ऐसी यह मञ्जुल - प्रकृति हृदय आकर्षित करने वाली है।।

संध्या में जुगनू ,तारों के जैसे चम-चम करते हैं ,
और यामिनी के कालों में हिमकर सदा निखरते हैं ,
मन में ऊहापोह मचा है संग में उनके आली है।।

अपने उन गीले - केशों से मुखमण्डल पे हैं वार किये ,
इस हृदय - पटल के भावों को उसने ही हैं झंकार दिये ,
 वो बारिश की बूंदों में मुझको संग भिगाने वाली हैं।। 

वो गोद में अपने सर - रख मेरे बालों को सहलाती हैं ,
अधरों से गालों को छूकर वह चित्त शून्य कर जाती हैं ,
वह तरुणी मेरे जीवन को इक राह दिखाने वाली है।।

उसकी आँखों की मदहोशी ने दिल को मेरे लूट लिया ,
आखिर मैं भी न रह पाया उसके दिल में फिर कूच किया ,
दिल पे पहरा जिसने डाला शायद भइया की साली है।।

इस कविता की अन्तिम पंक्तियाँ मैंने अपने एक मित्र ( भाई ) के लिए लिखी हैं ,
इस कविता की अन्तिम पंक्तियों से मेरा कोई सम्बन्ध नही।। 

'' कुछ शेर ''

ऐ एहतियात - ए - इश्क़ तुझसे नाखुश हूँ मैं।
खुश तो तब होता जब बर्बाद - ए - मंज़र होता।।

आवाज़ निकलती है तो संवाद आता है ,
हिन्दुस्तान जुबाँ पे आए तो आबाद आता है।
नमस्कार करने के लिए खड़े हो जाओ मित्रों !,
क्यों कि बड़ों की डाट बाद में पहले आशिर्वाद आता है।।

बड़ी शिद्दत से पूजा करूँगा तुम्हारी ,गर मुझपे रहमे - करम कर दो ,
हमेशा मस्तक रहेगा तुम्हारे चरणों में अगर मेरी झोली भर दो।
माना कि खुदगर्ज़ हूँ मैं ,फिर भी मेरे यार ,
मेरे मस्तिष्क के ज़र्रों - ज़र्रों में उसकी यादें भर दो।।

तेरी जुस्तजू में जिंदगी गुजार दूंगा मैं ,
तेरी यादों को सुबह - ए - शाम प्यार दूंगा मैं।
तुझे देखने का मुरीद हूँ, ऐ हमसफ़र !
तेरे लिए सारी दुनिया को ठोकर मार दूंगा मैं।।

तेरे लबों पे अधर को सजाना चाहता हूँ ,
दुनिया मुझे कुछ भी कहे पर तुझे पाना चाहता हूँ।
तुम्हारे हुश्न - ओ - इश्क पे कुर्बान हूँ मैं ,
तुम्हारी गली में फिर से अपनी दुनिया बसाना चाहता हूँ।।

 मैं ना ही स्वयं में होश चाहता हूँ ,
और ना ''कारवाँ - गाहे - दिलकश'' का अफसोस चाहता हूँ।
मैं तो बंजारा हूँ यारों मेरा क्या ? बस ,
ठहरने के लिए ''रुख़े आलमफरोज'' चाहता हूँ।।

रूह काँप जाती है जब तुम्हें भुलाने की कोशिश करता हूँ ,
सर फक्र से ऊपर उठता है जब सज़दे में लाने की साजिश करता हूँ।
मुतमइन से रियाज़ करता हूँ तुम्हारे मार्फत प्राप्त यादों का ,
कि तुम्हारे तासीरों से मैं तुम तक पहुंचने की कोशिश करता हूँ।।

उर्दू शब्दार्थ - १. कारवाँ - गाहे - दिलकश - काफिला ठहरने का सुन्दर स्थान।
                    २. रुख़े आलमफरोज - संसार को अपनी रोशनी से चमका देने वाला चेहरा।
                    ३.  एहतियात - ए - इश्क़ - सावधान,सतर्क इश्क़।
                    ४. मुतमइन -  आराम से।
                    ५.  मार्फत - द्वारा।
                    ६. तासीरों - गुणों। 
                    

 

'' कुछ मुक्तक ''

कविता न कहानी न कोई छन्द जानता हूँ ,
न शेर ,शायरी न रहना बन्द जानता हूँ।
रहता हूँ सींचता मैं उनको ही अनवरत ,
बागों के अपने फूल की सुगन्ध जानता हूँ।।

तेरी यादों के समन्दर में जब मैं डूब जाता हूँ ,
तेरे ख्वाबों में खोकर के मैं शायर खूब गाता हूँ।
मगर ऐ दिलनसी !सुन ले जब तू खुद को रुलाती है ,
मैं तेरे पास भी रहके स्वयं ही सूख जाता हूँ।।

तेरी नफरत को हसरत में बदल न दूँ तो तू कहना ,
तेरी उल्फत को चाहत में बदल न दूँ तो तू कहना।
मगर ऐ बेमुरौवत !सुन तू खुद पे कितना काबू पा ,
तुझे मैं अपने चरणों में झुका न दूँ तो तू कहना।।

तुम्हारे दुःख भरे जीवन को खुशियों से सजा दूँगा ,
दिए गर साथ तुम मेरा तुम्हें दुल्हन बना लूँगा।
समर्पण कर दिया जीवन तुम्हारे ही लिए मैंने ,
अगर तुम प्यार से कह दो तो शय्या भी सजा लूँगा।।

जिन्दगी स्वयं से घबराती है ,
जो चाहे वही कराती है।
मुझसे दूर जब वो जाती है ,
छाँह में धूप नजर आती है।।

बिदाई का समय था आँखे भरी हुई थी ,
सामान पैक करने में वो कहीं बिज़ी थी।
कोई चाहने वाला जा कमरे में रो रहा था ,
गाड़ी पे बैठते ही वो भी तो रो पड़ी थी।।

प्रेम ही अब घर है मेरा प्रेम ही अब द्वार है ,
प्रेम गर  मैं न करूँ जीवन को इस धिक्कार है।
प्रेम का भूखा हूँ मैं बस प्रेम को ही जनता हूँ ,
प्रेम के आगे न अपने आपको पहचानता हूँ।।

जी चाहता है कि खुद को सजा दूँ ,
फूलों से तेरे चरण को डुबा दूँ।
सूँघूँ उन्हें और बिछाऊँ मैं ओढूँ ,
माता के चरणों में जीवन लुटा दूँ।।

 

21/09/2016

'' गुफ़्तगू है के उनको चमन चाहिए ''

गुफ़्तगू है के उनको चमन चाहिए ,
दर ब दर उनको मेरा नमन चाहिए।

अश्क हैं न यहाँ आँख में थम रहे ,
हम गरीबों के तन पे कफ़न चाहिए।।

इब्तदा कब हुई , इन्तहा है कहाँ ,
अब भगीरथ में इक आचमन चाहिए।।

जो नही जानते इश्क़ में मर्शिया ,
मेरी गलियों में अब आगमन चाहिए।।

लूटना है मुझे प्यार से लूट लो ,
पर कटीले ,वो तिरछे नयन चाहिए।।

रोज़ कहते रहे इश्क़ कर लो मिया !
इश्क़ करने के ख़ातिर सनम चाहिए।।

वो हवस के पुजारी वहाँ हैं खड़े ,
चींथने के लिए इक बदन चाहिए।।

भस्म करना अगर हो उन्हें नारियों !
दिल में शोला , करों में अगन (अग्नि )चाहिए।।

मजलिसें चल रही हैं शहर दर शहर ,
अब मुझे इक शहर में अमन चाहिए।।

कई सालों रजिस्टर रहा मेज पे ,
तब समझ आया के उनको धन चाहिए।।

वो धरा पे रहेंगे नही इस कदर ,
हाँथ में आज स्टेटगन चाहिए।।

जीत लूँगा जहाँ ये अगर साथ दो ,
पर  कदम दर कदम पे , कदम चाहिए।।

ज़िन्दगी मौज़ में अब बहाओ मेरी ,
आज कुदरत की मुझको रहम चाहिए।।

19/09/2016

जब - जब याद करोगे पाओगे मुझे.......

जब - जब याद करोगे पाओगे मुझे
अपने लोगों में मेरी बात , सुनाओगे मुझे।

इक सपना हूँ मैं मेरा साथ अभी मत छोड़ो ,
अपनी दुनिया में अकेले रहे गाओगे मुझे।।

तेरी इक याद मुझे कर रही पागल ऐसे ,
बिखरूँगा के पहले ही सजाओगे मुझे।।

नही सिन्दूर तो,मेरे जिस्म का रुधिर भर लो ,
जब समझोगे मेरे भाव लगाओगे मुझे।।

मुझे जाने दो बहुत दूर के,जीवन कम है ,
वक़्त हूँ गुजरूँगा तुम क्या ? रोक पाओगे मुझे।।

आज मैं खुश हूँ कि तेरी याद में बंजारा हूँ ,
कल रोओगे तुम हर वक्त, न पाओगे मुझे।।

तेरी नादानी ने कुछ इस कदर किया मेरे संग ,
अभी पागल हूँ कल , शायर कह के बुलाओगे मुझे।।

नही हूँ मैं तुम्हारे पास....

तुम ,
         आते रहे हर रोज़ मेरे सपनों में ,
          उड़ती हुई चिड़िया ,
          तो कभी ,
          शरद की धूप सी ,
          जो हर रात डरा देती है मुझको ,
          कि जैसे ,
          कोई समेट लेना चाहता है तुम्हें ,
          और काट देना चाहता है तुम्हारे पर ,
          जिनसे छूना है तुम्हें ,
          आकाश।
          कि वो आकाश भी ,
          कर रहा है तुम्हारा इन्तज़ार ,
          जो हर रोज़ देखता है
          तुम्हारे सपने ,
          पर, भयावह
          जिससे उचट जाती है उसकी नींद
          और ,लिखता है कविता ,
          जिससे हर रोज़ बचा लेता है , तुम्हें
          पर देखना सतर्क रहना ,
          नही हूँ मैं तुम्हारे पास  .....

16/09/2016

'' जनसंख्या है , आबादी है ''

जनसंख्या है , आबादी है ,
लगता मुझको बर्बादी  है।

जिस देश में भूँखे लोग मरें ,
उस देश में क्या ? आजादी है।

जिस घर में चूल्हे जलें नहीं ,
उस घर बिटिया की शादी है।

घर जाते ही छपटा ले जो ,
वो मेरी बूढ़ी - दादी हैं।

प्रेमी हूँ मिलन करूँ कैसे ?
वो महलों की शहज़ादी हैं।

वो लोग मंच पे बैठे हैं ,
जो लोग पहनते खादी हैं।

भाषण देते वो माया पर ,
जिनका सिंहासन चांदी है।

उनसे मज़कूर भी क्या करना ?
जो केवल हिन्दूवादी हैं।

अंग्रेजी - सत्ता हिला दिए ,
वो वीर महात्मा गाँधी हैं।

उनसे हम आश लगाएं क्या ?
वो तो विदेश के आदी हैं।

ऐ '' नील '' नही वहशत कुछ भी ,
अब बातों की आजादी है।

' बच्चे हैं , उनको पलने दो '

बच्चे हैं , उनको पलने दो !

कब तक तुम कोख उजाड़ोगे ,
कब तक बच्चों को मरोगे !
जो साँचे में आ जाते हैं उनको तो अब तुम ढ़लने दो !!

कितने तो अभी अपाहिज़ हैं ,
वो बच्चे जो नाजायज़ हैं !
यदि बैशाखी पे चलते हैं तो शौक़ से उनको चलने दो !!

जिसको पाली हो प्रसव करो ,
न उसको अब तुम शव करो !
जो देख जलें मिथ्या बोलें उन लोगों को तुम जलने दो !!

जो हैं अनाथ न दुत्कारो ,
उनको संताप से न मारो !
यदि मचल गए हैं बालक सब तो खुलकर आज मचलने दो !!

बच्चों को हृदय लगाओ तुम ,
इक खुशी आप में तुम !
यह देख अगर सुलगे कोई तो उसको ज़रा सुलगने दो !!

07/09/2016

" वाहवाही नही चाहिए अब मुझे "

वाहवाही नही चाहिए अब मुझे ,
शहंशाही नही चाहिए अब मुझे

जो गरीबों के दुःख , दर्द समझे नही,
वो इलाही नही चाहिए अब मुझे

भूँख से ज़िंदगी सब तड़पती रहें ,
वो तबाही नही चाहिए अब मुझे

छोड़कर राह में भाग जाते हैं जो ,
व्यर्थ - राही नही चाहिए अब मुझे

ज़ुल्म जो भी करे अब सज़ा दो उसे ,
बेगुनाही नही चाहिए अब मुझे

हाँथ रखकर के गीता पे मिथ्या कहे ,
वो गवाही नही चाहिए अब मुझे

खून खौले न जिनका बलात्कारों पे ,
वो सिपाही नही चाहिए अब मुझे

जुल्म सहकर सदा शान्त बैठी रहे ,
वो सियाही नही चाहिए अब मुझे 

" अपने कौन हैं ? सभी पराए ।। "

अपने कौन हैं ? सभी पराए ।।

जब तक खुद का अर्थ नही है ,
सत्य है मिथ्या , व्यर्थ नही है ।
तब तक ये दुनिया ठुकराए ।।

रोया हूँ , प्रायः अपनों से ,
टूटा हूँ, बिखरे सपनों से ।
गैरों से क्या आश लगाएँ ?

ईश्वर शान से जीना चाहूँ ,
न अपमान मैं पीना चाहूँ ।
मुझसे ही क्यों द्वेष जताए ?

03/09/2016

" तुम्हारे ख्याल में "

जिन्हें सपनों में न भुला पाए ,
उन्हें आखिर मैं भुलाऊँ कैसे ?
उनके इस बेवफाई के किस्से ,
भरी महफिल में सुनाऊँ कैसे ?

रहनुए बहुत आए ,गए और फरार हुए ,
जली बाती से ये दीपक मैं जलाऊँ कैसे ?
वैसे तो इधर भी कमी नहीं है कलियों की ,
फिर भी रेत में मैं फूल खिलाऊँ कैसे ?

बरसों के जख्म तन के भर रहे शायद ,
डाल अंगार उन्हें जख़्म बनाऊँ कैसे ?
कभी कविता, कभी गज़लें, कभी इन मिश्रों से ,
हूँ उनका नाम लिया, वरना बुलाऊँ कैसे ?

तेरी नादानी ने इस कदर कहर ढाया है ,
रात की नींद उड़ी सोऊँ, सुलाऊँ कैसे ?
तूने बीती हुई यादों का बोझ जो डाला,
तुम्ही बताओ इसका भार उठाऊँ कैसे ?

तेरी फिकर में कभी सहर, कभी शाम हुई ,
मैंने सोचा कि पूरी रात बिताऊँ कैसे ?
रात छोटी पड़ी भावों में तेरे मस्त रहा ,
तेरी पलकें न झुकी ,आँख हटाऊँ कैसे ?

सामने आता रहा भोला, फरेबी चेहरा,
तेरे चेहरे के मुखौटे को हटाऊँ कैसे ?
सोंचता हूँ  के आज रात यहाँ पार करूँ,
पर तुम्हें छोड़ अकेले यहाँ जाऊँ कैसे ?

तेरा मक़सूद है शायद मुझे गिराने का ,
अम्दन पैर पे मैं वज्र चलाऊँ कैसे ?
जब दिल टूट कर बिखर गया श्मशान हुआ,
अब मैं प्यार, मुहब्बत को जताऊँ कैसे ?

क़यास आता रहा मित्र बना लूँ उनको ,
टूटे पत्ते को मैं टहनी से मिलाऊँ कैसे ?
उनकी फ़ितरत है कि वो एक पे नही टिकते ,
सागर में नाव मैं उतार, चलाऊँ कैसे ?

आज महबूब संग खिले - खिले नज़र आए ,
कितने महबूब हैं उनके ये बताऊँ कैसे ?
प्यार की अर्थियाँ कितनों की उठा दी उसने,
उनके इल्ज़ाम यूँ उँगली पे गिनाऊँ कैसे ?

कभी जो मेरे खुदा, मेरी दुआ होते थे,
आज भी हैं उन्हें आखिर मैं रुलाऊँ कैसे ?
उनकी आदत है भुलाने की, भुला दें हमको,
कुछ भी कहूँ मगर उनको भुलाऊँ कैसे ?

" फिजा में चमकते सितारे मिलेंगे "

फिजा में चमकते सितारे मिलेंगे ,
हमारे तुम्हारे इशारे मिलेंगे ।

भटक भी गये बीच मजधार में तो ,
कहीं न कहीं तो किनारे मिलेंगे ।।

अगर छद्म होगा न मन में तुम्हारे ,
तेरी राह पे पुष्प - न्यारे मिलेंगे ।।

नही सीखना तुम कभी द्वेष करना ,
जहाँ में तुम्हें लोग प्यारे मिलेंगे ।।

न हिन्दू, न मुस्लिम, न सिख इसाई ,
तुम्हें सर्वदा भाईचारे मिलेंगे ।।

जरा सा सम्हल के मगर पैर रखना ,
नही दर - बदर पे जुवारे मिलेंगे ।।

नहीं तर्जना , भर्त्सना तुम करो अब ,
चमकते हुए चाँद - तारे मिलेंगे ।।

निखरना अगर है तुम्हें सूर्य बनकर ,
जगत - ज्ञान जीवन में सारे मिलेंगे ।।

अगर इश्क में बेवफाई न होगी ,
तो शत्रु सदा तुमसे हारे मिलेंगे ।।

गली कूच में प्रेम के गीत गाओ ,
तुम्हारे हृदय को सहारे मिलेंगे ।।

मेरी दिलरुबा तुम जरा मुस्कुरा दो ,
तुम्हारी अदाओं के मारे मिलेंगे ।।

ये दिलकश जवानी , ये अल्हड़ कहानी ,
के चर्चे घरों में हमारे मिलेंगे ।।

" सूनापन "

सूनापन छाया है मुझमें, एक उदासी सी छाई ,
जीवन सारा वियोगमय है, देखो ऋतु वसन्त आई ।

मैं रोता हूँ, कमरे में इक, बैठ अकेला उनसे दूर ,
न समझें वेदना मेरी, कलियाँ हैं खुलकर मुस्काई  ।।

हृदय प्रकम्पित है, अन्तःस्थल में यह कैसा ऊहापोह ।
दारुण - हृदय रुदन करता है प्रकृति में हरियाली आई ।।

आज हुआ फिर से सम्वेदित फिर देखो मधुमास चढ़ा ।
जब - जब मैं मजबूर रहा, बस तब ही क्यों बारिश आई ?।।

बारिश की रिमझिम बूँदें तन पर पावक सी लगती हैं ।
आखिर फिर क्यों बरसे हैं ? तरुणी बन क्यूँ ली अँगड़ाई ?।।

ऊपर पूनम - चाँद सुशोभित, नीचे पवन सुगन्धित है ।
कई दिनों से दिखे नही तुम, पुनः तुम्हारी याद आई ।।

भ्रमरों का गुंजार श्रवणकर मन में टीस उभरती है ।
ये लो मैं जाने वाला हूँ और छलक कर वो आई ।।

02/09/2016

" पहले क्या थे ? आज हुए क्या ? "

क्या खोए ? क्या पाए सोंचो ?
पहले क्या थे ?आज हुए क्या ?
जो पहले समृद्ध कभी थे,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

जीवन की सब गतिविधियों से,
गर्व हुआ करता था सबको ।
जिनके आश्रयदाता थे हम ,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

कभी इसी पावन - धरती की,
इक हुंकार से जो डरते थे ।
ऐयासी में डूबे रहने से ,
पूँछो हम आज क्या हुए ?

देश में जिस स्त्री - जाति की,
लोग कभी पूजा करते थे ।
आज उन्हीं लोगों से पूँछो,
उनके साथ हैं आज हुए क्या ?

वल्लभ ,बोश ,और सिंह जैसे,
कितने वीर हुए धरती पर ।
कभी मर्द जो कहलाते थे ,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

शिक्षक - शिक्षा से भारत ने,
विश्व - पताका लहराया था ।
आज उन्हीं शिक्षा - शिक्षक से,
पूँछो के हैं आज हुए क्या ?

जो तप, सन्ध्या - वन्दन आदि से,
ब्रह्मज्ञानी कहलाते थे ।
उसी देश के ब्रह्मज्ञों से पूँछो,
हैं, वो आज हुए क्या ?

जो अपने उत्तम कर्मों -
के द्वारा विश्व - पटल को जीते ।
आज उन्हीं की हम सन्तानों से,
पूँछो, हम आज हुए क्या ?

विश्वामित्र , कण्व के जैसे,
ऋषि - गण कभी हुआ करते थे ।
लोभ , मोह, माया में फंसकर,
उनसे पूँछो आज हुए क्या ?

संस्कृत, संस्कृति और सभ्यता,
के प्रतीक जो कहलाते थे ।
दूषित - वाणी, गन्दे पहनावे से,
पूँछो ! आज क्या हुए ?

" जब तक पावन मातृभूमि पर "

जब तक पावन मातृभूमि पे,
मुझ जैसे दीवाने होंगे ।
हृदय - गीत गाए जाएँगे,
गज़ल, गीत और गाने होंगे ।।1।।

कलियों पर भँवरे मड़राएँ,
वो पराग - दीवाने होंगे ।
प्रेम - विरह में जलते जाएँ,
कुछ ऐसे परवाने होंगे ।।2।।

तुम रोते हो इसके पीछे,
आखिर! कुछ अफसाने होंगे ।
जीवन मात्र चार - पल का है,
कष्टों को अपनाने होंगे ।।3।।

मित्रों से है जीवन सारा,
कार्य में हाँथ बटाने होंगे ।
बोझ नही होगा सर पे जब,
दुःखों से अन्जाने होंगे ।।4।।

दुल्हन आए कमरे में,
के पहले सेज सजाने होंगे ।
युग बदला तुम भी बदलो,
दुल्हन के पैर दबाने होंगे ।।5।।

जैसे ही युग अँगड़ाई ले,
गीत बदल कर गाने होंगे ।
ज़रा बताओ बातें अपनी,
किस्से नये पुराने होंगे ।।6।।

होंठों पे हो प्रेम की भाषा,
हृदय से हृदय मिलाने होंगे ।
दुश्मन भी आ गले मिले जब,
पुष्प-वृष्टि बरसाने होंगे ।।7।।

मित्र - मण्डली की बैठक में,
चाय - पान फिर पाने होंगे ।
कई दिनों के बाद मिलेंगे,
अपने नये जमाने होंगे ।।8।।

सारे गज़ल, गीत, छन्दों को,
जन - जन तक ले जाने होंगे ।
अन्धकार मिट जाए सारा,
ऐसे दीप जलाने होंगे ।।9।।

कलम तुम्हारी सारस्वत है,
तुमको छन्द बनाने होंगे ।
जहाँ - जहाँ तक 'नील' न पहुँचा,
वहाँ - वहाँ पहुँचाने होंगे ।।10।।

" सिने जगत और जनता "

आज के चलचित्र बत्तर और हैं अश्लील होते,
गड़ रहे हैं ये हृदय में जैसे कोई कील  होते ।

है प्रभावित आज की जनता हनी सिंह और सनी से,
एक के हैं वस्त्र छोटे, दूजे बाल नुकीले होते ।।1।।

भाव के गाने नही हैं और न वो भंगिमा ।
देखने को मिल रहे हैं ऐसे गाने शील होते ।।2।।

बस यही केवल नही इनके सदृश कितने वहाँ पे ।
तन दिखाते ,चिपकते हैं, दिखते हैं रंगीन होते ।।3।।

बिकनियों से स्तन छुपाए डांस करती फ्लोर पे वो ।
और लाखों, करोड़ों जन देखते हैं भील होके ।।4।।

न रहे वो शब्द, वो अल्फाज़, वो संवाद अब ।
दिख रहे हैं भाव सारे इस समय सड़्गीन होते ।।5।।

देखने को मिल रहा इन पिक्चरों से अब यही ।
जैसे कोई पुरुष - स्त्री करते नंगी सीन होते ।।6।।

वो समझती हैं परी खुद को, नही मालुम उन्हें ।
आज उनकी वजह से हैं अदालतों में दलील होते ।।7।।

आँख पे पर्दा पड़ा है इस नगर की रोशनी से ।
जिस्म का व्यापार है बस इसमें न कुछ फील होते ।।8।।

छोटे कपड़े देखकर हैं गिद्ध प्रायः लोग बनते ।
जिनके घर इज्जत लुटी है, उनके घर गमगीन होते ।।9।।

"खून की नदियाँ बहेंगी "

खून की नदियाँ बहेंगी घर तुम्हारे शोर होगा,
जिस्म के टुकड़े करेंगे, तांडव घनघोर होगा ।

भूल जाओ देश को ,न इस कदर वाणी निकालो,
राग न, कोई द्वेष न बस शोक ही चहुँओर होगा ।।1।।

जान भी न पाओगे के कौन मारा? कौन काटा ?
सोंच भी न पाओगे, तुम सोंचोगे कोई और होगा ।।2।।

युद्ध जब होगा भयंकर शस्त्र छोड़ेंगे सभी ।
देखने को तब मिलेगा कौन किसकी ओर होगा ?।।3।।

हिन्दु हैं हम और हिन्दोस्ताँ हमारी जान है ।
देशद्रोही प्राणियों का सिर, हमारा पैर होगा ।।4।।

हो चुकी हत्यायें निर्मम देश में इस, प्राणियों की ।
सोंचा छोड़ो गलतियाँ हैं कोई भटका चोर होगा ।।5।।

पुनः इन चिंगारियों को छेड़कर न आग देना ।
भूख से मर जाओगे और हाँथ न इक कौर होगा ।।6।।

क्रोध से तुम रक्तरंजित न करो ऐ पाकवासी ।
वरना !भारत माँ के चरणों में तेरा सिरमौर होगा ।।7।।

हों भले ही देश में अब कितने ही आतड़्कवादी ।
रात काटेंगे वहाँ पे, आर्यावर्त में भोर होगा ।।8।।

लाशों को दफ्नाओगे कैसे ? ओ पाकिस्तानियों ।
न जगह तेरे लिए है, न ही कोई ठौर होगा ।।9।।

हिन्दु का तात्पर्य केवल हिन्दुओं से है नही ।
मुख पे भारतवासियों के नाद अब पुरजोर होगा ।।10।।

17/08/2016

" गजल "

हूँ मैं बन्जारा तो बन्जारा रहने दो ।
बुलाओ ना हमें आवारा रहने दो ।।

तुम्हारे बिन अकेला हूँ जहाँ में हमनसी मेरे,
ज़रा फ़र्माइए मुझसे के क्या हैं? आशियाँ तेरे ।
मेरी जानम बता दो मुझको न कुछ और कहने दो ।।

समन्दर ज़ोर से लहरें उठाता फेंकता बाहर,
किनारे रोंकते ,अंकुश लगाते आज सरहद पर ।
मेरे दुःख दर्द बस मेरे उन्हें अब मुझको सहने दो ।।

तुम्हारे बेवफा -अन्दाज़ को कैसे बयाँ कर दूँ,
तज़ुर्बा है नही मुझको तुम्हें कैसे नया कर दूँ ।
कहर सा ढ़ह रहा है आज इसको और ढ़हने दो ।।

चली थी तीर जिन आँखों से उन आँखों का आशिक हूँ,
हुई थी बात जो मुझसे उन्हीं बातों से वाकिफ़ हूँ ।
सजा लो ,आज पलकों पे मुझे बस प्यारा रहने दो ।।

हमेशा याद आती हैं घनी जुल्फों की वो छाया,
सदा ही संग चलती हैं तेरी परछाई बन साया ।
मैं भावों में अगर बहता हूँ तो भावों में बहने दो ।।

हूँ मैं बन्जारा तो बन्जारा रहने दो ।
बुलाओ ना मुझे आवारा रहने दो ।।

29/07/2016

" पाकिस्तान ? "

हमें तुम जोश में न लाओ,
वरना ! राख कर देंगे ।
अगर उँगली उठी तेरी,
सुपुर्द - ए - खाक कर देंगे ।।1।।

हमारी शक्ति को ललकार मत,
शमशान कर देंगे ।
तुम्हारे पाक को पूरे हम,
कब्रिस्तान कर देंगे ।।2।।

मरे अफजल, मरे कसाब,
मरा बुरहान धरती पर ।
ये भारत है यहाँ आतड़्क किये,
तो मार हम देंगे ।।3।।

कफन सर पे सजा कर लोग,
चलते हैं शरहदों पर ।
अगर आवाज निकली तो,
कफन हम दान कर देंगे ।।4।।

मिलाएँगे नजर तब तक ,
कि जब तक शान्त बैठोगे ।
अरे हिजबुल ! जरा भी मुँह खुला,
वीरान कर देंगे ।।5।।

कभी आओ तुम अपनी,
फौज पूरी लेके भारत में ।
अगर कश्मीर को देखे,
तो कत्ले - आम कर देंगे ।।6।।

कभी खामोश शेरों के,
इशारों को समझ लेना ।
नही बोलेंगे मुख से कुछ,
लहूलुहान कर देंगे ।।7।।

सलामत चाहते खुद को,
तो गीदड़ - भपकियाँ छोड़ो ।
नही तो अपने पैरों पे,
तुम्हारी जान कर लेंगे ।।8।।

अरे नवाज ! जरा सा सोंच के,
तुम लफ्ज को बोलो ।
नही, बालक यहाँ के,
जंग का ऐलान कर देंगे ।।9।।

तुम्हें अल्लाह की रहमत,
नही मिल सकती जीवन में ।
कि जब दफ्नाएँगे हम लाश,
एक अजान कर देंगे ।।10।।

तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए,
कि शेर बैठे हैं ।
अगर तुम सर - हिला बैठे,
तो बन्जर - रान कर देंगे ।।11।।

नही हो जानते सईद ,
हमारी हैसियत को तुम ।
हम अपनी माँ पे अपनी,
जिन्दगी कुर्बान कर देंगे ।।12।।

अरे नापाक ! पाकिस्तानियों,
यूँ ख्वाब न देखो ।
तुम्हारे पाक पे हम अपना,
हिन्दुस्तान कर देंगे ।।13।।

मियाँ नवाज ! पुनः न बोलना,
कश्मीर को लेकर ।
हम अपनी माँ के चरणों में,
ये सारा जहान कर देंगे ।।14।।

22/07/2016

" काशी ''

 काशी की महिमा क्या गाऊँ घर - घर यहाँ शिवाला है ।
 जितने उनके भक्त यहाँ हैं सबके संग मतवाला है ।।

नील करे है नमन आपको नीलकंठ स्वीकारो अब,
चरणपादुका में सर रखा हूँ नटराज पधारो अब,
जीवन को जो धन्य बना दे ऐसा भोला - भाला है ।।

 न लेते हैं दही, मलाई न लेते सोना चाँदी,
 न श्रृंगार करें वो अपना न वो उसके शौकी,
 मात्र लेश भर भस्म लगा दो बस प्रसाद भंग प्याला है ।।

 एक तरफ माँ अन्नपूर्णा दुखियों के दुःख दूर करें,
 अहंकार जिसमें भर जाए महादेव फिर चूर करें,
 ऐसा मञ्जुल - दृश्य सुनहरा मेघ जहाँ पर काला है ।।

 कालहरण हैं भैरव बाबा सदा यहाँ विश्राम करें,
 संकट मोचन हनूमान जी राम - भजन मे शाम करें,
 काशी की धरती पे प्यारा संगम बड़ा निराला है ।।

 पापहारिणी गंगा - माँ सब पाप हरण कर लेती हैं,
 शुभ्र - वर्ण की सरस्वती संताप हरण कर लेती हैं,
 शमी -  पत्र हैं अर्पित करते हाँथ मंदार की माला है ।।

 पाँच - पाँच विश्वविद्यालय हैं, राजधानी है शिक्षा की,
 साधु - संत का गढ़ है काशी, उचित व्यवस्था दीक्षा की,
 कई देश के लोग यहाँ, पर भेद न गोरा - काला है ।।

  इसी बनारस सारनाथ से राष्ट्रचिह्न हैं ग्रहण किये,
  इसी बनारस कालनगर में जाने कितने शरण लिये,
  पंचक्रोशी की यात्रा करके  कितनों ने दुःख टाला है ।।

 काशी मोक्षदायिनी नगरी लोग यहाँ मरने आते,
 मणिकर्णिका, हरिश्चन्द्र पर इच्छावश जलने आते,
 मोक्ष प्राप्त कर जाते हैं वो साथ में डमरू वाला है ।।

 सुबह भोर में उठकर सारे संत - महात्मा ध्यान करें,
 महादेव से सुबह यहाँ पे महादेव से शाम करें,
 महादेव पे वारि जाऊँ ऐसा क्या रंग डाला है ।।

 काशी की महिमा क्या गाऊँ घर - घर यहाँ शिवाला है ।
 जितने उनके भक्त यहाँ हैं सबके संग मतवाला है ।।

1 " छाया है गहरा अन्धकार "

ये बच्चे अभी तुम्हारी सोच से परे हैं, इन्हें जीने दो !












छाया है गहरा अन्धकार,
ऐसे में कुछ कर लो विचार ।।

संसार - समर सा लगता है
दुर्बल - जनमानस दिखता है
भाई , भाई को काट रहा,
बेटा  माँ - बाप को डाँट रहा
अब प्रेम का मौलिक - रूप नही
खिलने वाली वह धूप नही
अंगार पे चलते लोग यहाँ
पत्थर से लड़ते लोग यहाँ
हम उनसे क्या टकरायेंगे
क्या उनको मार भगायेंगे
जब घर वाले ही खन्जर हैं
आवारे हैं, सब बन्जर हैं
वो आ समक्ष ललकार रहा
प्रतिक्षण करता वो वार रहा
हम पीछे भगते जाते हैं
बस पीठ पे गोली खाते हैं
ऐसे समयों में दूर रहो
यूँ कहो न ,मुझसे करो प्यार ।।
                         
 ईराक हो या अफगान यहाँ,
सीरिया हो या जापान यहाँ
यूरोप में गोले बरसे हैं
खाने - पीने को तरसे हैं
अब खून से सड़कें लाल हुई
लोगों के जान की काल हुई
माँ पुत्र का चिथड़ा तन लेकर
परिजन का वो क्रन्दन लेकर
जाने कैसे सोई होगी
जाने कैसे रोई होगी
आँखों से आँसू सूख गये
जो पास कभी थे दूर गये
अब कैसे वह जी पायेगी
निश्चित पागल हो जाएगी
दुनिया को कुछ भी लगे मगर
मुझको ये बात रुलाती है
ऐसी स्थिति को तुम भी समझो ।
पश्चात करो बातें हजार ।।

नीरवता मुझको दिखती है
विह्वलता तम पर लिखती है
मार्तण्ड अदृष्ट सा लगता है
अब वह प्रचण्ड सा दिखता है
घनघोर निराशा सी छाई
यह देख मृत्यु - आँधी आई
सब नष्ट - भ्रष्ट हो जायेगा
यदि उसको मीत बनायेगा
यह देख सामने काल खड़ा
है लिए रूप विकराल बड़ा
मुख का आकार नही इसके
तन का विस्तार नही इसके
पर हैं विचार निकृष्ट बहुत
वह मारेगा , है धृष्ट बहुत
किस तरह उसे समझाऊँ मैं
किस मार्ग से उस तक जाऊँ मैं
इस निर्मम - विकट परिस्थिति में ।
प्यारी ! बातें न करो चार ।।

 वह धीरे - धीरे बढ़ता है
निज - लक्ष्य को सुदृढ़ करता है
ऐसी प्रचण्ड सी खाई है
अब पास नही परछाई है
पर डरो नही सत्कारो तुम
अपने विचार से मारो तुम
वह मूर्ख नही यह ज्ञान करो
बातें करने में ध्यान धरो
वरना, वह खूब रुलायेगा
तन काट - काट तड़पायेगा
कलुषित विचार वो रखता है
ईश्वर से भी न डरता है
आगन्तुक है बिभीषिका कल
उसको तू सोंच समझ कर चल
प्रज्ञा - प्रयोग में लाओ अब
उसको भी गले लगाओ अब
हे प्रियतम ! ऐसे जीवन में ।
तुम समझो कुछ मेरे विचार ।।

पर सोंच समझ के कार्य करो,
पहले देखो फिर वार करो
वरना प्यारे! फँस जाओगे
जा दलदल में धँस जाओगे
अब उठो शेर! रणभेरी है
तेरे आने की देरी है
और हाँथ में इक शमशीर रखो
तुम युद्ध करो और वीर बनो
मारो उसको, काटो उसको
सौ टुकड़े कर बाँटो उसको
मैं फरसा लेके आता हूँ
उसका सर पैर में लाता हूँ
मैं आवारा कहलाऊँगा
मैं हत्यारा कहलाऊँगा
इसका मुझको दु:ख दर्द नही
भारतीय हूँ मैं, नामर्द नही
मैं बोल चुका जो कहना था ।
प्रियवर क्या हैं तेरे विचार? ।।

छाया है गहरा अन्धकार ।
ऐसे में कुछ कर लो विचार ।।


" गीत गाता हूँ मैं "

गीत गाता हूँ मैं,
                   गुनगुनाता हूँ मैं ।
एक तुमको हृदय में,
                    बसाता हूँ मैं ।।
तन ये अर्पित किया,
                मन समर्पित किया ।
आत्मा की धरातल पे,
                         पाता हूँ मैं ।।
जीत लो ये जमीं,
                     जीत लो आसमाँ ।
पास आओ कि तुमको,
                          रिझाता हूँ मैं ।।
तुम हृदयस्पर्शिनी,
                         मेरी प्रियदर्शिनी ।
बातें तुमको ही सारी,
                           बताता हूँ मैं ।।
मेरी जीवनलहर,
                        मेरी आह्लादिनी ।
अपनी कविताएँ तुमपे,
                          बनाता हूँ मैं ।।
मुझको कुछ भी कहो,
                           अब सजा चाहे दो ।
हृदय की गति को अपने,
                                   सुनाता हूँ मैं ।।

" वो हमें हम उन्हें भूल जाने लगे "

वो हमें हम उन्हें भूल जाने लगे ।
पास आए मगर दूर जाने लगे ।।

गुल में जो साज थे सारे झड़ने लगे,
शूल आके हृदय में जो गड़ने लगे ।
वक्त की आँधियों ने बदल सब दिया,
आज वो ही हमें आजमाने लगे ।।

एक अर्शे से चाहत थी जिस बात की,
बात हो कुछ हमारे मुलाकात की ।
तोड़ डाले सभी भाव - बन्धन के वो,
जिनको पाने में शायद जमाने लगे ।।

अभ्र से सब्र जब टूट जाते हैं तो,
वादियों से घटा छूट जाती हैं तो ।
इश्क जब प्यार से रूठ जाता है तो,
हम उन्हें प्यार से तब मनाने लगे ।।

लफ्ज मुख से निकलते नही वक्त उस,
वो मुझे देखकर रोज होते हैं खुश ।
पर परेशाँ तो होते हैं वो भी कभी,
मुझसे नजदीकियाँ वो बढ़ाने लगे ।।

मैं भी था प्यार पे अपने बिलकुल अड़ा,
भाव के बन्धनों को रहा था बढ़ा ।
वक्त की साजिशों से पलट सब लिया,
अब मुझे प्यार से वो बुलाने लगे ।।

फिर चली सर्द - वायु  उसी रात को,
उसने खोली हमारी गई बात को ।
मुझको याद कराया मेरा पहला दिन,
पुनः आपस में प्यार जताने लगे ।।

जो भी थी दूरियाँ सारी मिट अब गई,
जो गलत - फहमियाँ थी सिमट सी गई ।
एक - दूजे लिपट कर गले हम मिले,
वो हमें, हम उन्हें पास पाने लगे ।।

वो मेरी भावनाओं को सुनती गई,
साथ ही ख्वाबों को अपने बुनती गई ।
आसमाँ के तले नील लेटे हुए,
एक - दूजे के सपने सजाने लगे ।।

वो हमें हम उन्हें भूल जाने लगे ।
पास आए मगर दूर जाने लगे ।।

" वसन्त और तुम "

यह कुसुम पवन सब बार - बार,
उन चरणों को छू जायें हैं ।
नव रस का जो मिथ्याभिमान,
नतमस्तक सम (सामने ) हो जाए है ।।

जब चलती हैं वो नदियों में,
नदियाँ भी हिलोरे खाएँ हैं ।
जब उतरें वो सागर में तो,
वह चरण चूमने आये है ।।

वन, उपवन की क्या बात कहें,
जो स्वयं ही आश लगाए हैं ।
वह कोमल - कोमल तृण जो हैं,
न छूने से मुरझाए हैं ।।

मुखड़ा उनका इतना सुन्दर,
कि चाँद भी शीश झुकाए है ।
जल, थल, नभ सब गर्व करते,
मुखड़े का दर्शन पाये हैं ।।

हैं कोमल, मधुर अधर उनके,
मधुशाला सी ढरकाए हैं ।
जब निकले हैं बाहर को वो,
स्वागत में बारिश आए है ।।

मीठी इतनी वाणी उनकी,
कि कोयल भी ललचाए है ।
उस वाणी के श्रवणातुर जन,
अरसिक रसिक हो जाए हैं ।।

हैं कपोल कोमल उनके,
मानो की कमल समाये हैं ।
हैं आज हमारे सामने वो,
गालों पे लालिमा लाए हैं ।।

है मधुशाला उन नयनों में,
जिनको देखे ललचाए हैं ।
हैं मृगनयनी उनकी आँखें,
उनमें ही प्राण समाएह हैं ।।

बालों की क्या बातें करना,
जो रातरानि महकाए हैं ।
छूने में हाँथ गर्व करता ,
सूँघने पे वो इठलाये हैं ।।

है सुमेरु - स्तन उनका,
हम देख - देख हर्षाए हैं ।
हैं शर्मीली इतनी वो कि,
कुच पे वे हाँथ लगाये हैं ।।

है शर्म, हया इतनी उनमें,
कि बातों से डर जाए हैं ।
है छुई - मुई उनकी आदत,
छूने पर वो शर्माए हैं ।।

21/07/2016

" इक्कीसवीं सदी और हम "

इक्कीसवीं सदी है और इतनी बन्दगी है,
खामोश है जमाना खामोश जिन्दगी है ।
सूखी हुई हैं आँखें न पेट मे निवाला,
अभियान चल रहे हैं और इतनी गन्दगी है ।।

कुछ लोग दूसरों के बढ़ने से जल रहे हैं,
कुछ लोग मुकद्दर को अपने बदल रहे हैं ।
रोते वही हैं प्रायः जो शान्त हो गये हैं,
जो रेस में लड़ते हैं वो ही सँभल रहे हैं ।।

विद्वान यहाँ बैठे सब मूर्ख भर गये हैं,
जो पढ़ना चाहते थे वो छात्र मर गये हैं ।
पढ़ना - पढ़ाना है नही, भौकाल बनाना है,
जिनके है पास पैसा बस वो सँवर गये हैं ।।

जीवन बड़ा अजीब मुसाफिर सा घूमता है ,
पागल हुआ प्रसन्न सदा मस्त झूमता है ।
न द्वेष भाव उसमें, न राग की है आशा,
जो जैसे चाहता है वो वैसे लूटता है ।।

कितनी सड़क पुरानी टूटी हुई पड़ी हैं,
जो नई बन रहीं हैं फूटी सी लग रही हैं ।
जिनपे थी जिम्मेदारी, पैसे ही खा गये वो,
हर बात अब बड़ों (नेताओं) की झूठी सी लग रही हैं ।।

हैं कई ऐसे लोग जिनके सर नही है छत,
कितने तो एक्सीडेन्ट में होते हैं छत - विछत ।
डूबी है जवानी नशे में उनको क्या खबर,
कितने गरीब सोते हैं सड़कों पे सदा मस्त ।।

" एक तरफ मेरी माँ है और एक तरफ है प्यार मेरा "

एक तरफ मेरी माँ है और एक तरफ है प्यार मेरा ।
दोनों मेरा जीवन हैं दोनों में ही संसार मेरा ।।

अवगाहन करता हूँ अपनी माँ से सुनी कहानी में,
उसको मैं प्रायः देखूँ राधा जैसी दीवानी में,
एक कहानी अकथनीय है दूजे से विस्तार मेरा ।।

पिता, भाइयों, बहनों में भी प्यार अजेय सा दिखता है,
निश्छल और निष्कपट प्यार न बाजारों में बिकता है,
गुरुजन मेरे ईश्वर हैं उनसे ही सारा सार मेरा ।।

जीवन भी मुश्किल घड़ियों में कठिन परीक्षा लेता है,
भौतिकता जो सीख लिया इच्छा पूरी कर लेता है,
द्वार और घर छोटा है पर प्यार भरा परिवार मेरा ।।

स्वार्थ और नि:स्वार्थ भाव के लोग बहुत से दिखते हैं,
लोग यहाँ ऐसे भी हैं जो कुछ पैसों में बिकते हैं,
मित्र बहुत उत्तम हैं मेरे जीवन है साकार मेरा ।।

बहन नही कहता मैं सबको और नही कहना चाहूँ,
पर इज्जत करता हूँ सबकी सबके संग रहना चाहूँ,
किसी के भावों से मैं खेलूँ ऐसा न व्यवहार मेरा ।।

देशप्रेम करना चाहें और देशप्रेम हम करते हैं,
मातृभूमि पे नतमस्तक हैं, मातृभूमि पे मरते हैं,
प्यार हमें करना आता न देशद्रोह व्यापार मेरा ।।

कितने राष्ट्रभक्त फौजी दंगों में मारे जाते हैं,
कितने सैनिक बेचारों के संघ जलाये जाते हैं,
चाहूँ मैं ऐसे भक्तों को नमन करें स्वीकार मेरा ।।

गंगा की अविरल धाराएँ काशी में जो बहती हैं,
कल - कल, छल - छल करती मेरे कानों मे कुछ कहती हैं,
उठो पुत्र ! ले जाओ जीवन का सर्वस्व श्रृंगार मेरा ।।

बहुत क्लिष्ट शब्दों से अपनी कविताएँ वो लिखते हैं,
जनमानस के बीच नही विद्वानों में वो दिखते हैं,
 भावों की कविता लिखता, न शब्दों का बाजार मेरा ।।

अभी आपका अनुज हूँ मैं और अभी अनुज ही रहने दो ,
प्यार से मैं जीवन जीता हूँ ,प्यारी बातें कहने दो,
अभी मञ्च पे आया हूँ यूँ करो न जय जयकार मेरा ।।

एक तरफ मेरी माँ है और एक तरफ है प्यार मेरा ।
दोनों मेरा जीवन हैं दोनों में ही संसार मेरा ।।


" मैं हिन्दुस्तान दिखाउँगा "

एक लफ्ज में बयाँ कर दिये
अपना सारा ज्ञान हैं ,
न तुम, न मैं, न ये दौलत
दो दिन के मेहमान हैं ।
अपनी छाती चौड़ी कर लो
डट जाओ अब सीमा पे ,
अमर शहीद भगत सिंह जैसे
कितने ही कुर्बान हैं ।।

देश हमारा टिका हुआ है
वीर सपूत के कन्धों पर ,
 होगा अत्याचार बराबर
लोफड़ और लफड़्गों पर ।
न होगी उनकी सुनवाई
सजा यहाँ की मौत है,
बम फोड़े गोला बरसायें
आतड़्की उन दड़्गो पर ।।

क्या कसाब , क्या अफजल ऐसे
कितने मारे जायेंगे ,
दाउद भी यदि बुरी दृष्टि से
देखे तो थर्रायेंगे ।
काँप उठती है रूह बदन की
शेर जहाँ चिल्लाते हैं
हिन्दुस्तान की धरती पे आतड़्की
मारे जाते हैं ।।

हिन्दू न , मुस्लिम हम न ही
सिख और ईसाई हैं,
भारत माँ के लाल हैं हम
हम सबकी दौलत माई है ।
हैं सपूत या हैं कपूत
हम सबसे प्यार जताती हैं ,
इसीलिए भारत माता
हम सबके हृदय समाती हैं ।।

बाइबिल क्या है ? धर्म ग्रन्थ क्या ?
तुझे कुरान पढ़ाउँगा ,
सन्ध्या, पूजा करना कैसे
वेद , पुरान सिखाउँगा ।
हम लोगों पर शक हो तो
बस एक बार संकेत करो ,
हृदय - चीर के एक - एक में
हिन्दुस्तान दिखाउँगा ।।
मैं हृदय - चीर के एक - एक में
हिन्दुस्तान दिखाउँगा ।।
           
                     "  जय हिन्द   "


20/07/2016

" स्रोतस्विनी बन जाइए "

स्रोतस्विनी बन जाइये ,
हमको बहा ले जाइये ।।

मानस - पटल के भाव में,
हृदयस्थ आविर्भाव में,
मेरे रोम - रोम में आइये ।।

इस प्लवन रूपी भार को,
स्वच्छन्द इस संसार को,
अब आप आके बचाइये ।।

नव रसों से सब युक्त हों ,
परिवार सब संयुक्त हों ,
सौहार्द - भाव बढ़ाइये ।।

पंक्षियों को उन्मुक्त कर ,
आवास भी उपयुक्त कर ,
उनके भी शरण में जाइये ।।

दारुण - हृदय के शोक को ,
निष्पाप बाँझिन कोख को,
फल - फूल से भर जाइये ।।

भागीरथी , ओ नर्मदा ,
पुण्यप्रदा , माँ शारदा ,
साहसिक सबको बनाइये ।।

हे शिरोभूषण धारिणी ,
कल्याणिनी ,हे कमलिनी ,
बस ज्ञान - दीप जलाइये ।।

स्रोतस्विनी बन जाइये
हमको बहा ले जाइये ।।

" जी चाहता है "

जी चाहता है के बालों से तेरे मैं खेलूँ सुबह - शाम उसमें बिता दूँ,
जी चाहता है के गालों कि तेरी चढ़ी लालिमा को मैं दुल्हन बना लूँ ।
जी चाहता है के होंठों के रस को मैं अमृत बना के अधर पे सजा लूँ ,
जी चाहता है के बाँहों में तेरे नया और नया आशियाना बना लूँ ।।

जी चाहता है के हाँथों में तेरे स्वकर को मैं देकर के खुद को बचा लूँ ,
जी चाहता है के आँखों में तेरे मैं डूबूँ, सुबह - शाम उसमें नहा लूँ ।
जी चाहता है के आँसू को तेरे मैं मदिरा बना के गले में दबा लूँ  ,
जी चाहता है के आँचल में तेरे मैं सोऊँ, जहाँ को उसी में सुला लूँ ।।

जी चाहता है के आँधी बनूँ मैं, हो इतनी ही ताकत कि तुझको उड़ा लूँ,
जी चाहता है के बारिश बनूँ मैं हो इतना ही जल कि मैं तुझपे बरस लूँ ।
जी चाहता है के ओढूँ, बिछाऊँ तुझे अपना बिस्तर और चद्दर बना लूँ,
जी चाहता है के प्रकृति मैं बनकर सदा, सर्वदा तुझको अपने में ढ़क लूँ ।।

" देखता हूँ "

देखता हूँ, मनीषियों को "वसुधैव कुटुम्बकम्" का नारा लगाते
खुशी मिलती है,
देखता हूँ उन्हीं आचार्यों को किसी के अवसान पश्चात सभागारों में दुःख व्यक्त करते वक्त विषाद से युक्त चेहरा और आँखों में आँसू ,सुकून मिलता है लगता है कि सम्वेदना अभी है कहीं न कहीं,
विद्वत्गणों का अपनत्व दिखता है, पर देखता हूँ कुछ प्रतिभा सम्पन्न आचार्यों को शोक व्यक्त करते समय भी क्लिष्ट भाषा का प्रयोग कर अपनी विद्वता  का परिचय देते हुए,
सोंचता हूँ, इनकी भाषा ही ऐसी होगी, पर सुनता हूँ, उन्हें सभागारों के बाहर परस्पर ये कहते कि "कैसे बोला मैं " दुःख होता है,
लगने लगता है ,यह सब मात्र दिखावा है, मिथ्यास्तुति है,
महसूस ही नही होने देते कि यह सब औपचारिक है ।
पर इतना ही नही देखा मैंने ,करुणा के सागर हुए व्यक्ति, दोस्त मित्र
की आँखों से बड़ी - बड़ी बूँदें छलकते हुए भी मैंने देखा है ।।
मैंने देखा है "वसुधैव कुटुम्बकम् "का नारा लगाते हुए भी मैंने देखा है ।।

"मैं, मेरी हार और तुम "

वन, उपवन, गिरि, कानन, कुञ्ज,पराग, सुराग, तड़ाग में हो।
तुम निर्मल, जल,थल, फल और मेरे सकल भाग में हो ।।

सरल,समीर, सरस, सरसुन्दर इन्दु सदृश तुम बिन्दु भी हो ।
तुम अमिट, अजेय, अनन्त, अखण्ड मेरे जीवन के आनन्द में हो ।।

ग्रीष्म, शरद, वर्षा, हेमन्त, शिषिर और वसन्त में हो ।
तुम शरद पूर्णिमा के जैसी मेरे सुख दुःख के सम्बन्ध में हो ।।

विह्वल, विमल, विकल, विश्वासी मेरे पापों के अविनाशी हो ।
तुम गंगा, यमुना, सरस्वती मेरे दीपक की तुम बाती हो ।।

है प्यार अद्भुत और अलौकिक पर रखती नही जरा सी हो ।
तुम हरिद्वार, केदारनाथ, अयोध्या, और मेरी काशी हो ।।

तुम अनुपम सुन्दर वेश बनाकर करती मुझको दीवाना ।
मैं आपकी यादों में खोया और जगत से हुआ बेगाना  ।।

आवारा हूँ, बेगाना हूँ, हमेशा ही मैं हारा हूँ ।
कहते न बनती ये बातें किसका मैं हुआ सहारा हूँ  ।।

तुम नये हो इस जगत में जीतकर की हो मुझे खुश ।
हूँ अकेला इस जगत में और तुम्हारी यादें हैं बस ।।

"अपनी जिन्दगी की कली खिले, न खिले पर
  आपकी जिन्दगी पुष्पमय कर दें ।।"

19/07/2016

" गीत "

अजनबी शहर में अजनबी राह पर
अजनबी से मुलाकात होने लगी ।
अजनबी वो भी थे अजनबी हम भी थे
अजनबी से जरा बात होने लगी ।।

धीरे - धीरे बढ़ा सिलसिला बातों का
बातों - बातों में हम पास आने लगे ।
आये वो पास मेरे तो स्नेहित हुआ
और भी पास आये चाहत बढ़ी ।।

चाहतों का रहा न ठिकाना वहाँ
चाहतें आसमाँ पे थी पहुँची हुई ।
आसमाँ पे पहुँच तो गया मैं मगर
अब उतरने का कोई बहाना न था ।।

एक दिन बाग में आये वो प्यार से
कह दिये अजनबी हो, रहो अजनबी ।
सन्न हो मैं गया कुछ भी कह न सका
अजनबी हो गया मैं उसी शाम से ।।

अजनबी हो गया मैं मगर दिल मेरा
आज भी उनकी यादों में गुम हो रहा ।
मेरी चाहत अभी भी है तुमसे सनम
अब तो मिलने का कोई बहाना न था ।।

अजनबी शहर में अजनबी राह पर
अजनबी से मुलाकात होने लगी ।
अजनबी वो भी थे अजनबी हम भी थे
अजनबी से जरा बात होने लगी ।।

" हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में "

हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में ।
पिजड़ो में बन्द हैं कई हुए शरारत में ।।

अब देश विरोधी नारे लगते दिल्ली में,
सामान मिले हम लोगों को सब झिल्ली में ।
सब कामचोर हो कहते , हूँ मैं हरारत में,
हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में ।।1।।

लड़कियों के संग व्यवहार - अनर्गल करते हैं,
भौजी,भाभी और माल कहा वो करते हैं ।
कहने को मात्र युवा हैं बाकी प्रायः नशे के हालत में,
हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में  ।।2।।

यह पुलिस - प्रशासन उनका न कुछ करती है,
डंडा, बन्दूख, तोप भी रखके डरती है ।
डर जाते हैं नयनों के एक इशारत में,
हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में ।।3।।

कुछ नीच और कुछ महानीच जो बैठते हैं,
अधिकार माँगने पर जनता से ऐंठते हैं ।
हर पाँच साल में हाथ जोड़ने की हालत में,
हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में ।।4।।

हैं कई लोग भूखे मरते, रहने को पास जगह न है,
जैसे विधि ने हो कष्ट लिखा उनको कष्टों को सहना है ।
एसी जब रूम में चलती है तब जा सोते हैं इमारत में,
हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में ।।5।।

नापाक ओवैशी जैसे कितने दोगले हैं,
जो अपनी माँ को माँ न समझे वो गले हैं ।
भारत को खत्म करने के हैं ये चाहत में,
हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में ।।6।।

अब पाकिस्तानी झण्डा खुल के लहरेगा,
जब काश्मीर उनके जा देश में ठहरेगा ।
लगता है हिन्दुस्तान को पाकिस्तान बनाने के इजाजत में,
हिजड़ो की संख्या बहुत भरी है भारत में ।।7।।


" हिन्दुस्तान "

जी चाहे है जीवन को मैं एक नया इन्सान बना दूँ ,
देखूँ मैं आतंक जहाँ भी जगह को उस शमशान बना दूँ ।
हो जाऊँ मैं निठुर हठी जब समझाने से वो न समझें,
पाकिस्तानी धरती पे मैं दूसरा हिन्दुस्तान बना दूँ ।।1।।

जितनों के मुख में गाली है अब जुबान उनकी अटका दूँ ,
राष्ट्रद्रोह करने वालों को सब मिल शूली पे लटका दूँ ।
हों कितने परमाणु,मिसाइल हमको नही डरा सकते हो,
कभी मिलो मुझसे प्यारे! तो मैं अपनी औकात दिखा दूँ ।।2।।

कलह,क्लेश,कपटी लोगों में प्रेम का मैं इक दीप जला दूँ ,
मुझमें इतनी शक्ति भरो कि भारत को मैं नई कला दूँ ।
हो खुशहाल सभी का जीवन ऐसा कुछ वरदान मुझे दो,
इस समग्र-संसार तमस को एक बार मैं पुनः जला दूँ ।।3।।

जीवन है आतंकित भय से स्वयं में मैं अभिमान जगा दूँ ,
एक नही सौ-सौ फायर हों इतना मैं बलवान बना दूँ ।
राष्ट्रभक्ति में अगर कलम सर होने की नौबत आए तो ,
ईश्वर शक्ति मुझे देना कि अपना मैं बलिदान चढ़ा दूँ ।।4।।

बुद्धि को परिमार्जित कर दो एक नया संसार बना दूँ ,
निश्छल और निष्कपट गरीबों का अच्छा घर-द्वार बना दूँ ।
जब तक रहूँ जिऊँ ऐसे ही, ऐसा कुछ वरदान मुझे दो,
हिन्दुस्तान की धरती को मैं विश्वविजय का हार चढ़ा दूँ ।।5।।

26/06/2016

" मेरा समर्पण "

मैं बारिश में भीगा हूँ जो,
इसके पीछे कोई साजिश है ।
तुम शायद समझ नही पाओ,
मेरे अन्दर की जो बारिश है ।।1।।

क्या तुम,क्या मैं,क्या बारिश ये ?
न कोई मुझे रुला सकता ।
है अन्त:करण में प्यार इतना,
स्वार्थी भी नही भुला सकता ।।2।।

जब टूट जाएँ सारे पत्ते,
तब वृक्ष न शोभित होता है ।
तब कुछ भी न अच्छा लगता,
समझो जब पतझड़ होता है ।।3।।

पीली होती पत्तियाँ यहाँ,
अब मैं भी पीला पड़ जाऊँ ।
जीवन हूँ मैं जी लिया बहुत,
जीवन से आगे बढ़ जाऊँ ।।4।।

उसके प्रति रखना स्नेह मेरे-
अन्दर कि मैं कुछ कर जाऊँ ।
उसकी यादों को और उसे,
लिखते - लिखते ही मर जाऊँ ।।5।।

तब हो जाए विश्वास यदि,
तो आके गले लगा लेना ।
और अपने नर्म उन हाँथों से,
मेरी चिता को आग लगा देना ।।6।।

  आज जो फेंक रहे हो मुझको,
  कल तुम फेंक नही पाओगे ।
  बचा के रखना रोशनी प्यारे!
  कल मुझे देख नही पाओगे  ।।
                                   

" इज़हार -ए- मोहब्बत "

जिन्दगी की शाम होनी चाहिए,
जाम की महफिल भी सजनी चाहिए ।
वैसे तो टूटे हुए हैं लाख दिल,
हर दिलों की प्यास बुझनी चाहिए ।।1।।

अहर्निश उनके खयालों में मस्त हूँ,
जिन्दगी बदनाम होनी चाहिए ।
दिन के कालों में बड़ा ही भेद है,
इसलिए बस रात होनी चाहिए ।।2।।

हो गया बदनाम फिर भी इश्क है,
जिन्दगी बर्बाद होनी चाहिए ।
दिल टुकड़े हों करोड़ों तब भी क्या?
अवयवों में यादें होनी चाहिए ।।3।।

अजनबी हो प्यार से वो कह गये,
प्यार की हर लहर सहनी चाहिए ।
हो अगर नफरत भी उनके हृदय मे,
नफरतों से कहर ढहनी चाहिए ।।4।।

गर वो चाहें सर कलम कर दें मगर,
इसका कुछ ईनाम होना चाहिए ।
उनकी इच्छाओं की जो भी लिस्ट हो,
कामना है पूर्ण होनी चाहिए ।।5।।

हम भी बस इक नज़्म बनकर रह गये,
नज़्मियत की लाज रखनी चाहिए ।
रोई हैं बरसों से मेरी आँखें ये ,
आँखें भी अब बन्द होनी चाहिए ।।6।।

अब मरूँ या तब मरूँ मैं क्या पता?
हो रही अब देर आज्ञा चाहिए ।
मरते दम तक ये कहूँगा मैं सदा,
बस तेरा ही साथ होना चाहिए ।।7।।

वाक्य हो अवसान का जो भी मगर,
उसमें तेरा नाम होना चाहिए ।
हों भले ही नाम कितने तत्सदृश,
राम न तेरा नाम होना चाहिए ।।8।।

हाँथ तेरा कर में होना चाहिए,
सामने मुखड़ा भी होना चाहिए ।
आँखों में मेरी सदा और सर्वदा,
बस तेरी ही आँख होनी चाहिए ।।9।।
                                         

" सरस्वती वन्दना "

हे माँ मेरा अज्ञान हर
सम्पूर्ण देश का ज्ञान भर ,
हम सत्यनिष्ठ बने रहें
इतना ही बस उपकार कर ।
हम मार्ग न भूलें कभी
कठिनाइयाँ यदि हों सभी,
हम अपनी राह बढ़े रहें,
न कभी किसी से डरे रहें ।।
मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ।।

हर व्यक्ति का संसार हो
उसमें ही सारा प्यार हो,
यह देशप्रेम बना रहे
ऐसा मेरा परिवार हो ।
कोई भी न भटके कभी
अब एकता में बधें सभी,
कोई न अभिमानी रहे
गमनागमन भी बना रहे ।।
बस इतना तो तू समान कर ।।

मेरी आत्मशक्ति न क्षीण हो
भले विश्व की ही न भीड़ हो,
हम अपनी नीति सफल करें
चाहे घन,गर्जन गम्भीर हो ।
सबका हृदय चट्टान हो
और हिम्मती ये जहान हो,
मेरी कामना को पूर्णकर
संसार भी सम्पूर्ण कर ।।
अब इतना मेरा काम कर ।।

मेरी वाणी में गाम्भीर्य भर
मेरे सर्वपापों का नाश कर,
मुझसे भूल में भी न भूल हो
ऐसा कोई वरदान कर ।
हर मार्ग पर बस शूल हैं
खिलते नही अब फूल हैं,
ज़रा देखो हम पे ध्यान दो
हम अटकें न यह शान दो ।।
इस बात को तू श्रवणकर ।।

हे माँ मेरा अज्ञान हर,
सम्पूर्ण विश्व का ज्ञान भर ।।
                                 

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...