25/06/2016

"देखो ये कितने सन्त बने "

देखो ये कितने सन्त बने,
देवालय बना महन्त बने ।

रहते गोपियों के मध्य में ये,
खेलते उनसे हर वक्त हैं ये।
जब खेल लिया जिस गोपी से,
उसका फिर वहीं पे अन्त किये।।

उन छोटे छोटे बच्चों से,
अधेड़ उम्र की महिलाओं से।
नवयुवती उन बहनों से,
जाने कितने दुष्कर्म किये।।

जाने कितनों को लूट लिये,
जाने कितनों को बेच दिये ।
जो देख लिया इनकी हरकत,
उसको हैं आज ये मूक किये ।।

अपनी गलती न देखते ये,
गलती यदि कोई और करे ।
हैं, अन्यायी ये जनता के,
पंचायत में सरपंच बने ।।

है मिली जुली सरकार यहाँ,
खुद खाते और खिलाते हैं ।
कुछ पैसा दे देते इनको,
हैं अदालत में बलवन्त बने ।।

जनता का पैसा ही लेकर,
नि:शुल्क किया विद्यालय अस्पताल ।
यह जनता कितनी मूरख है,
कहती है कि आनन्द किये ।।

एसी कूलर यह लगवाकर,
सोंचते हैं कि आनन्द करें ।
सौ गो माताओं को रखकर,
गोकुल के हैं ये नन्द बने ।।

अरबों की मन्दिर बनवाकर,
खुद की भी फोटो छपवाकर ।
दिखावे में पैसे दे देकर,
हैं आज यहाँ धनवन्त बने ।।

ये "नील" जो कहता है जानो,
प्रायः पाखंडी हैं मानो ।
ये क्रूर,कुकर्मी नास्तिक हैं,
कहते खुद को हनुमन्त हैं ये ।।

देखो ये कितने सन्त बने ।
देवालय बना महन्त बने ।।
                         

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