19/09/2016

नही हूँ मैं तुम्हारे पास....

तुम ,
         आते रहे हर रोज़ मेरे सपनों में ,
          उड़ती हुई चिड़िया ,
          तो कभी ,
          शरद की धूप सी ,
          जो हर रात डरा देती है मुझको ,
          कि जैसे ,
          कोई समेट लेना चाहता है तुम्हें ,
          और काट देना चाहता है तुम्हारे पर ,
          जिनसे छूना है तुम्हें ,
          आकाश।
          कि वो आकाश भी ,
          कर रहा है तुम्हारा इन्तज़ार ,
          जो हर रोज़ देखता है
          तुम्हारे सपने ,
          पर, भयावह
          जिससे उचट जाती है उसकी नींद
          और ,लिखता है कविता ,
          जिससे हर रोज़ बचा लेता है , तुम्हें
          पर देखना सतर्क रहना ,
          नही हूँ मैं तुम्हारे पास  .....

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