24/09/2016

सर्दियों में सड़क पर

जाड़ों के दिन थे ,
कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी ,
कुछ लोग जो अपनी गर्लफ्रेंडों के साथ
गलबँहिया करते ,आ जा  रहे थे
उसी मार्ग से ,
जिस मार्ग पे पड़ी थी एक औरत ,
जिसके तन पे मात्र एक लत्ता था ,
75 साल की बुढ़िया मेरी दादी की उम्र की
जो ठीक से अब चल भी नही पाती ,
कि जा सके वह उस अलाव के पास ,
जो उससे कुछ ही दूर पर जल रहा था।

और नही निकलती है उसके मुख से आवाज़
कि वह उनसे कह सके ,
कुछ पुराने ऊनी स्वेटर और कान ढकने के लिए
एक पुराने सॉल के लिए ,
जिससे ढक सके वह अपना शरीर
और बच सके सर्दी से ,
जो अपनी गर्लफ्रेंडों पे हज़ारों खर्च कर देते हैं
शायद बेवजह।

उन्हें 75 साल की  दादी नही दिखती
ठण्ड से काँपती ,थरथराती हुई।
नही सुन पाते हैं वो उसकी आवाज़ ,
नही देख पाते हैं वो उसके व्यथित - मन
की भावनाओं को ,
जो शायद देख लेते हैं ,
बिन दिखाए ही अपनी गर्लफ्रेंड की सारी
इच्छाओं को ,सुन लेते हैं उनकी अनकही आवाज़।
देखता हूँ ,सहम जाता हूँ और जब कभी
गुज़रता  हूँ लंका से,
याद आ जाती है उन सर्दियों में सड़क पर
पड़ी उस महिला की जिसकी सहायता मैं भी
नही कर पाया था तब ,
जब उसे आवश्यकता थी मेरे सहारे की।।

No comments:

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...