08/11/2016

नक्कटी जनता और हम

 जितनी नक्कटी है ये जनता
 उतने ही नक्कटे हैं हम।
 जो पहुँच जाते हैं ,
हर साल छह महीने के भीतर ही
कइयों मंच पर
जहाँ से देते हैं कइयों मौलिक विचार ।

समझाते हैं देश - दुनिया की बातें
खोलते हैं पोल नेता की
मंत्री की,
और इस बेलगाम कानून की ,
ले आते हैं सामने समाज में छिपी हुई
बुराइयों को,
करते हैं जनता के हित की बातें ।

मगर हमारी जनता ,
हमारे ही विचारों की अर्थियाँ उठाने में
अपना वक़्त ज़ाया नही करती।
वो बस पीट देती है तालियाँ
और अगर
कहीं कविता हो प्रेम पे तब देखो
इन तमाशबीनों की बजती हुई सीटियाँ ।

छेड़ दो दो - चार शेर
सुनते रहो अपने जुमलों पर जनता की वाहवाही।
क्योंकि आज की जनता को विचार नहीं
आनन्द चाहिए।
जिसके लिए हमें खरीदा जाता है चंद पैसों में ।

चंद पैसों के लालच और अपनी
शानो - शौकत के
लिए बिक जाते हैं हम।।

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