08/11/2016

सफ़र में जिन्दगी नीलाम कर दी

सुबह ख़्वाबों में आई शाम कर दी
भरी महफ़िल में उसने जाम भर दी

मरे अब तक नहीं हम रोज़ मरकर
सफ़र में जिन्दगी नीलाम कर दी

बड़ी शिद्दत से जिसको चाहता था
उसी नें आशिकी बदनाम कर दी

नशा अब तक चढ़ा है यूँ मेरे सर
मुझे यह बेरुख़ी वीरान कर दी

बड़ी हसरत भरी थी इस हृदय में
मुझे इक पल में वो अन्जान कर दी

अहिंसा के पुजारी बन गये हैं
कि जब से वो हृदय शमशान कर दी

कि अब ये दूरियाँ मिट पाएँ कैसे
बना दुश्मन वो पाकिस्तान कर दी

अधूरी जिन्दगी मैं ढूढता हूँ
कहाँ ये जिन्दगी कुर्बान कर दी 

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