05/01/2017

गीत (ओ री सखि )

ओ री सखि तोसे नैना लड़े निसदिन ।
काटूँ दिन रात अपने घड़ी गिन - गिन ।।

ज्ञान ,विज्ञान तू तू ही धन सम्पदा
साथ तेरा रहे जो ,कहाँ विपदा
मेरा ज्ञान बढ़ाओ निज शरण में लाओ
दु:ख दूर करो खुशियाँ बरसाओ ।

ज्ञान तुम बरसाओ रिमझिम - रिमझिम ।।

जैसा भी हो चरम इक तू सच सब भरम
संग साथ चलूँ तेरे जन्मों - जनम
तोसे लागी लगन भूला सब हूँ मगन
एकचित हो तुम्हें याद करता ये मन ।

तेरी दूरी सताए हर पल - हर छिन ।।

जाऊँ मैं बलिहारी तेरे रूप पे वारि
पुष्प अर्पित करूँ बन मैं फुलवारी
तेरे सपने सजाऊँ ,तुम्हें अपना बनाऊँ
नित संग रहूँ तोसे प्रीति बढ़ाऊँ ।

मैं अधूरा हूँ ,हे कृष्ण !इक तेरे बिन ।।

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