30/11/2017

गज़ल



एक निर्णय ले लिए फिर क्या फ़रक पड़ता खुदा
या तो जन्नत राह होगी या तो दोजख का सफर

जिन्दगी को आग की दरिया पे है रखना मुझे
या तो मेरी मौत होगी या रहूँगा मैं अमर

हर कदम पे ले रहे हैं वो परीक्षाएँ मेरी
तुम कहो ! मैं इश्क़ कह दूँ या कहूँ इसको समर

चाँद देखो छिप गया है सूर्य दीवाना सा है
मेरा क्या होगा बताओ आज तुम आई अगर

जो हमेशा दिल की बातें सोंचता, सुनता रहा
आ गया जाने कहाँ से बुद्धिमानों के शहर

चाँद से ऊपर पहुँच कर सूर्य पर रख दूँ कदम
मेरे सारे ख़्वाब जो सजकर बिखर जाएँ इधर

अपनी भी कुछ ख्वाहिशें हैं अपने भी कुछ स्वप्न हैं
छोड़कर इनको बताओ आप ही जाऊँ किधर 

2 comments:

Anonymous said...

बढ़िया है

Unknown said...

Vrey nice

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